Monday 12 July 2021

समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द (Paronyms)

समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द (Paronyms)


कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनमें स्वर, मात्रा अथवा व्यंजन में थोड़ा-सा अन्तर होता है। वे बोलचाल में लगभग एक जैसे लगते हैं, परन्तु उनके अर्थ में भिन्नता होती है। ऐसे शब्द 'समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द' कहलाते हैं।

जैसे- घन और धन दोनों के उच्चारण में कोई खास अन्तर महसूस नहीं होता परन्तु अर्थ में भिन्नता है।
घन= बादल
धन= सम्पत्ति

नीचे कुछ ऐसे ही शब्द और उनके अर्थ दिया जा रहा हैं।

तार लेखन (Telegram)

हिन्दी : तार लेखन (Telegram)

कम-से-कम शब्दों में सन्देश भेजने की पद्धति को 'तार' (Telegram) कहते हैं।
पहले केवल अँगरेजी में डाकघरों से तार भेजा जाता था, किन्तु अब हिन्दी में भी तार भेजा जाता है। आजादी के बाद इसका प्रचार दिन-दिन बढ़ता जा रहा है और जनता में यह लोकप्रिय होता जा रहा है। फिर भी, इस दशा में अभी बहुत कुछ करना है। हिन्दी में तार- सभी मुख्य तारघरों में देवनागरी में तार-प्रणाली चालू की जा चुकी है। राष्ट्रभाषा हिन्दी की उत्तरोत्तर प्रगति की दृष्टि से तार-क्षेत्र में भी हिन्दी का समुचित प्रयोग हो रहा है। कुछ लोगों का यह भ्रम है कि हिन्दी में तार लिखना महँगा है। सच तो यह है कि अँगरेजी तार की अपेक्षा देवनागरी तार पर खर्च कम होता है। अँगरेजी तार लिखवाने और पढ़वाने में जो समय और पैसा लगता है, देवनागरी तार भेजने में उसकी बचत होती है।

देवनागरी तारों में शब्द गिनने के कुछ विशेष नियम हैं, जिनसे ये तार सस्ते पड़ते हैं। उन नियमों की जानकारी के लिए दिल्ली की केन्द्रीय सचिवालय हिन्दी परिषद ने देवनागरी में तार नामक एक पुस्तिका प्रकाशित की है। इस पुस्तिका में सौ ऐसे वाक्यांश दिये गये हैं, जिनके लिए अँगरेजी के तारों में कई शब्दों का प्रभार (चार्ज) देना पड़ता है, किन्तु हिन्दी में उनके लिए या तो एक शब्द से काम चल जाता है अथवा समासयुक्त शब्दों का प्रयोग कर या विभक्ति को मिलाकर लिखने से केवल एक शब्द का प्रभार देना पड़ता है। उदाहरण के लिए 'day and night' अँगरेजी में तीन शब्द है, पर हिन्दी तार में 'रातदिन' एक शब्द माना जायेगा।

वाक्य विचार (Syntax)

हिन्दी : वाक्य विचार (Syntax)

वह शब्द समूह जिससे पूरी बात समझ में आ जाये, 'वाक्य' कहलाता हैै।
दूसरे शब्दों में- विचार को पूर्णता से प्रकट करनेवाली एक क्रिया से युक्त पद-समूह को 'वाक्य' कहते हैं।
सरल शब्दों में- सार्थक शब्दों का व्यवस्थित समूह जिससे अपेक्षित अर्थ प्रकट हो, वाक्य कहलाता है।
जैसे- विजय खेल रहा है, बालिका नाच रही हैैै।

वाक्य के भाग

वाक्य के दो भेद होते है-
(i)उद्देश्य (Subject) 
(ii)विद्येय (Predicate)
(i)उद्देश्य (Subject):-वाक्य में जिसके विषय में कुछ कहा जाये उसे उद्देश्य कहते हैं।
सरल शब्दों में- जिसके बारे में कुछ बताया जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं।
जैसे- पूनम किताब पढ़ती है। सचिन दौड़ता है।
इस वाक्य में पूनम और सचिन के विषय में बताया गया है। अतः ये उद्देश्य है। इसके अंतर्गत कर्ता और कर्ता का विस्तार आता है जैसे- 'परिश्रम करने वाला व्यक्ति' सदा सफल होता है। इस वाक्य में कर्ता (व्यक्ति) का विस्तार 'परिश्रम करने वाला' है।

संक्षेपण (Sankshepan)

संक्षेपण (Sankshepan)

किसी विस्तृत विवरण, सविस्तार व्याख्या, वक्तव्य, पत्रव्यवहार या लेख के तथ्यों और निर्देशों के ऐसे संयोजन को 'संक्षेपण' कहते है, जिसमें अप्रासंगिक, असम्बद्ध, पुनरावृत्त, अनावश्यक बातों का त्याग और सभी अनिवार्य, उपयोगी तथा मूल तथ्यों का प्रवाहपूर्ण संक्षिप्त संकलन हो।
इस परिभाषा के अनुसार, संक्षेपण एक स्वतःपूर्ण रचना है। उसे पढ़ लेने के बाद मूल सन्दर्भ को पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती। सामान्यतः संक्षेपण में लम्बे-चौड़े विवरण, पत्राचार आदि की सारी बातों को अत्यन्त संक्षिप्त और क्रमबद्ध रूप में रखा जाता है।
इसमें हम कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक विचारों भावों और तथ्यों को प्रस्तुत करते है। वस्तुतः, संक्षेपण किसी बड़े ग्रन्थ का संक्षिप्त संस्करण बड़ी मूर्ति का लघु अंकन और बड़े चित्र का छोटा चित्रण है। इसमें मूल की कोई भी आवश्यक बात छूटने नहीं पाती। अनावश्यक बातें छाँटकर निकाल दी जाती है और मूल बातें रख ली जाती हैं। यह काम सरल नहीं। इसके लिए निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता है।

उपसर्ग (Prefixes)

हिन्दी : उपसर्ग (Prefixes)

उपसर्ग उस शब्दांश या अव्यय को कहते है, जो किसी शब्द के पहले आकर उसका विशेष अर्थ प्रकट करता है।
दूसरे शब्दों में - जो शब्दांश शब्दों के आदि में जुड़ कर उनके अर्थ में कुछ विशेषता लाते है, वे उपसर्ग कहलाते है। 
जैसे- प्रसिद्ध, अभिमान, विनाश, उपकार।
इनमे कमशः 'प्र', 'अभि', 'वि' और 'उप' उपसर्ग है।
यह दो शब्दों (उप+ सर्ग) के योग से बनता है। 'उप' का अर्थ 'समीप', 'निकट' या 'पास में' है। 'सर्ग' का अर्थ है सृष्टि करना। 'उपसर्ग' का अर्थ है पास में बैठाकर दूसरा नया अर्थवाला शब्द बनाना। 'हार' के पहले 'प्र' उपसर्ग लगा दिया गया, तो एक नया शब्द 'प्रहार' बन गया, जिसका नया अर्थ हुआ 'मारना' । उपसर्गो का स्वतन्त्र अस्तित्व न होते हुए भी वे अन्य शब्दों के साथ मिलाकर उनके एक विशेष अर्थ का बोध कराते हैं।
उपसर्ग शब्द के पहले आते है। जैसे -'अन' उपसर्ग 'बन' शब्द के पहले रख देने से एक शब्द 'अनबन 'बनता है, जिसका विशेष अर्थ 'मनमुटाव' है। कुछ उपसर्गो के योग से शब्दों के मूल अर्थ में परिवर्तन नहीं होता, बल्कि तेजी आती है। जैसे- 'भ्रमण' शब्द के पहले 'परि' उपसर्ग लगाने से अर्थ में अन्तर न होकर तेजी आयी। कभी-कभी उपसर्ग के प्रयोग से शब्द का बिलकुल उल्टा अर्थ निकलता है। 
उपसर्ग के प्रयोग से शब्दों को तीन स्थितियाँ होती है - (i)शब्द के अर्थ में एक नई विशेषता आती है;
(ii)शब्द के अर्थ में प्रतिकूलता उत्पत्र होती है,
(iii) शब्द के अर्थ में कोई विशेष अन्तर नही आता।

शब्द-शक्ति (Word-Power)

शब्द-शक्ति (Word-Power)

शब्द का अर्थ बोध करानेवाली शक्ति 'शब्द शक्ति' कहलाती है।
शब्द-शक्ति को संक्षेप में 'शक्ति' कहते हैं। इसे 'वृत्ति' या 'व्यापार' भी कहा जाता है।
सरल शब्दों में- मिठाई या चाट का नाम सुनते ही मुँह में पानी भर आता है। साँप या भूत का नाम सुनते ही मन में भय का संचार हो जाता है। यह प्रभाव अर्थगत है। अतः जिस शक्ति के द्वारा शब्द का अर्थगत प्रभाव पड़ता है वह शब्दशक्ति है।
हिन्दी के रीतिकालीन आचार्य चिन्तामणि ने लिखा है कि ''जो सुन पड़े सो शब्द है, समुझि परै सो अर्थ''अर्थात जो सुनाई पड़े वह शब्द है तथा उसे सुनकर जो समझ में आवे वह उसका अर्थ है। स्पष्ट है कि जो ध्वनि हमें सुनाई पड़ती है वह 'शब्द' है, और उस ध्वनि से हम जो संकेत या मतलब ग्रहण करते है वह उसका 'अर्थ' है।
शब्द से अर्थ का बोध होता है। अतः शब्द हुआ 'बोधक' (बोध करानेवाला) और अर्थ हुआ 'बोध्य' (जिसका बोध कराया जाये)।
जितने प्रकार के शब्द होंगे उतने ही प्रकार की शक्तियाँ होंगी। शब्द तीन प्रकार के- वाचक, लक्षक एवं व्यंजक होते हैं तथा इन्हीं के अनुरूप तीन प्रकार के अर्थ- वाच्यार्थ, लक्ष्यार्थ एवं व्यंग्यार्थ होते हैं। शब्द और अर्थ के अनुरूप ही शब्द की तीन शक्तियाँ- अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना होती हैं।

समास (Compound)

समास (Compound)

 

दो या अधिक शब्दों (पदों) का परस्पर संबद्ध बतानेवाले शब्दों अथवा प्रत्ययों का लोप होने पर उन दो या अधिक शब्दों से जो एक स्वतन्त शब्द बनता है, उस शब्द को सामासिक शब्द कहते है और उन दो या अधिक शब्दों का जो संयोग होता है, वह समास कहलाता है।
दूसरे अर्थ में- कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक अर्थ प्रकट करना 'समास' कहलाता है।
समास में कम-से-कम दो पदों का योग होता है।
वे दो या अधिक पद एक पद हो जाते है: 'एकपदीभावः समासः'।
समास में समस्त होनेवाले पदों का विभक्ति-प्रत्यय लुप्त हो जाता है।
समस्त पदों के बीच सन्धि की स्थिति होने पर सन्धि अवश्य होती है। यह नियम संस्कृत तत्सम में अत्यावश्यक है।

व्याख्या (Explanation)

व्याख्या (Explanation)

'व्याख्या' किसी भाव या विचार के विस्तार और विवेचन को कहते हैं।

व्याख्या न भावार्थ है, न आशय। यह इन दोनों से भित्र है। नियम भी भित्र है। 'व्याख्या' किसी भाव या विचार के विस्तार और विवेचन को कहते हैं। इसमें परीक्षार्थी को अपने अध्ययन, मनन और चिन्तन के पदर्शन की पूरी स्वतन्त्रा रहती है।

व्याख्या के प्रकार


प्रसंगनिर्देश व्याख्या का अनिवार्य अंग है। इसलिए, व्याख्या लिखने के पूर्व प्रसंग का उल्लेख कर देना चाहिए, पर प्रसंगनिर्देश संक्षिप्त होना चाहिए। परीक्षाभवन में व्याख्या लिखते समय परीक्षार्थी प्रायः दो-दो, तीन-तीन पृष्ठों में प्रसंगनिर्देशकरते है और कभी-कभी मूलभाव से दूर जाकर लम्बी-चौड़ी भूमिका बांधने लगते हैं। यह ठीक नहीं। उत्तम कोटि की व्याख्या में प्रसंगनिर्देश संक्षिप्त होता है। ऐसी कोई भी बात न लिखी जाय, जो अप्रासंगिक हो। अप्रासंगिक बातों को ठूँस देने से अव्यवस्था उत्पत्र हो जाती है। अतः परीक्षार्थी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि व्याख्या में कोई बात फिजूल और बेकार न हो। प्रसंगनिर्देशविषय के अनुकूल होना चाहिए।

भावार्थ (Substance)


भावार्थ (Substance)

'सारांश' की तरह 'भावार्थ' भी मूल अवतरण का छोटा रूप है, किंतु 'भावार्थ' लिखने की रीति 'सारांश' की रीति से भिन्न है। वास्तव में, 'भावार्थ' की विधि 'गागर में सागर' भरने की एक क्रिया है। यहाँ मूलभाव का कोई भी भाव या विचार छूटना नहीं चाहिए। विषय को या बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहने या लिखने की यहाँ भी आवश्यकता नहीं; पर भावार्थ में भावों का पदान्वय भी नहीं होना चाहिए।

यद्यपि भावार्थ की लम्बाई-चौड़ाई की अन्तिम सीमा नहीं बाँधी जा सकती, तथापि आशय या भाव के प्रतिकूल उसे मूल अवतरण का कम-से कम आधा तो होना ही चाहिए। इसमें मूल के सभी प्रधान और गौण भाव आ जाने चाहिए। भाषा सरल और अपनी होनी चाहिए। 'सारांश' में केवल प्रधान भाव ही रहते हैं। किंतु 'भावार्थ' में छोटे-बड़े सभी भावों का समावेश किया जाता है। सच तो यह है कि 'भावार्थ' 'सारांश और 'व्याख्या' के बीच की चीज है।

'भावार्थ' के सम्बन्ध में एक विद्वान का कथन है- ''भावार्थ संक्षिप्त और स्पष्ट हो। इसे व्याख्या के रूप में नहीं होना चाहिए। केवल अन्वयार्थ (paraphrase) को भी भावार्थ नहीं समझना चाहिए।''

विशेषण (Adjective)

हिन्दी : विशेषण (Adjective)

जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताते है उन्हें विशेषण कहते है।
इसे हम ऐसे भी कह सकते है- जो किसी संज्ञा की विशेषता (गुण, धर्म आदि )बताये उसे विशेषण कहते है।
दूसरे शब्दों में- विशेषण एक ऐसा विकारी शब्द है, जो हर हालत में संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है।
जैसे- यह भूरी गाय है, आम खट्टे है।
उपयुक्त वाक्यों में 'भूरी' और 'खट्टे' शब्द गाय और आम (संज्ञा )की विशेषता बता रहे है। इसलिए ये शब्द विशेषण है।
इसका अर्थ यह है कि विशेषणरहित संज्ञा से जिस वस्तु का बोध होता है, विशेषण लगने पर उसका अर्थ सिमित हो जाता है। जैसे- 'घोड़ा', संज्ञा से घोड़ा-जाति के सभी प्राणियों का बोध होता है, पर 'काला घोड़ा' कहने से केवल काले घोड़े का बोध होता है, सभी तरह के घोड़ों का नहीं।
यहाँ 'काला' विशेषण से 'घोड़ा' संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित (सिमित) हो गयी है। कुछ वैयाकरणों ने विशेषण को संज्ञा का एक उपभेद माना है; क्योंकि विशेषण भी वस्तु का परोक्ष नाम है। लेकिन, ऐसा मानना ठीक नहीं; क्योंकि विशेषण का उपयोग संज्ञा के बिना नहीं हो सकता।
विशेष्य- जिस शब्द की विशेषता प्रकट की जाये, उसे विशेष्य कहते है।
जैसे- उपयुक्त विशेषण के उदाहरणों में 'गाय' और 'आम' विशेष्य है क्योंकि इन्हीं की विशेषता बतायी गयी है।
प्रविशेषण- कभी-कभी विशेषणों के भी विशेषण बोले और लिखे जाते है। जो शब्द विशेषण की विशेषता बताते है, वे प्रविशेषण कहलाते है।
जैसे- यह लड़की बहुत अच्छी है। मै पूर्ण स्वस्थ हुँ।
उपर्युक्त वाक्य में 'बहुत' 'पूर्ण' शब्द 'अच्छी' तथा 'स्वस्थ' (विशेषण )की विशेषता बता रहे ह, इसलिए ये शब्द प्रविशेषण है।

सर्वनाम (Pronoun)

हिन्दी : सर्वनाम (Pronoun)

जिन शब्दों का प्रयोग संज्ञा के स्थान पर किया जाता है, उन्हें सर्वनाम कहते है।
दूसरे शब्दों में-सर्वनाम उस विकारी शब्द को कहते है, जो पूर्वापरसंबध से किसी भी संज्ञा के बदले आता है।
जैसे- मै, तू, वह, आप, कोई, यह, ये, वे, उसका इत्यादि।
अन्य उदाहरण
(1)'सुभाष' एक विद्यार्थी है।
(2) वह (सुभाष) रोज स्कूल जाता है।
(3)उसके (सुभाष के) पास सुन्दर बस्ता है।
(4)उसे (सुभाष को )घूमना बहुत पसन्द है।
उपयुक्त वाक्यों में 'सुभाष' शब्द संज्ञा है तथा इसके स्थान पर वह, उसके, उसे शब्द संज्ञा (सुभाष) के स्थान पर प्रयोग किये गए है। इसलिए ये सर्वनाम है।
सर्व (सब) नामों (संज्ञाओं) के बदले जो शब्द आते है, उन्हें 'सर्वनाम' कहते हैं।
संज्ञा की अपेक्षा सर्वनाम की विलक्षणता यह है कि संज्ञा से जहाँ उसी वस्तु का बोध होता है, जिसका वह (संज्ञा) नाम है, वहाँ सर्वनाम में पूर्वापरसम्बन्ध के अनुसार किसी भी वस्तु का बोध होता है। 'लड़का' कहने से केवल लड़के का बोध होता है, घर, सड़क आदि का बोध नहीं होता; किन्तु 'वह' कहने से पूर्वापरसम्बन्धके अनुसार ही किसी वस्तु का बोध होता है।

क्रिया (Verb)

हिन्दी : क्रिया (Verb)

जिन शब्दों से किसी काम के करने या होने का ज्ञान हो उसे क्रिया कहते है।
दूसरे शब्दों में- जिस शब्द से किसी काम का करना या होना समझा जाय, उसे क्रिया कहते है।
जैसे- पढ़ना, खाना, पीना, जाना इत्यादि।

क्रिया के भेद

प्रयोग की दृष्टि से क्रिया के प्रकार
(1)प्रेरणार्थक क्रिया (Causative Verb)
(2)यौगिक क्रिया
(3)द्विकर्मक क्रिया(Double Transitive Verb)
(4)संयुक्त क्रिया (Compound Verb)
(5) सहायक क्रिया(Helping Verb)
(6) नामबोधक क्रिया(Nominal Verb)
(7) पूर्वकालिक क्रिया(Absolutive Verb)

दिन और महीने (Day and Mnoths)

हिन्दी : दिन और महीने (Day and Mnoths)

सप्ताह के दिन
सप्ताह में सात दिन होते हैं

हिन्दी मेंअँगरेजी में
(1) सोमवारMonday
(2) मंगलवारTuesday
(3) बुधवारWednesday
(4) बृहस्पतिवारThursday
(5) शुक्रवारFriday
(6) शनिवारSaturday
(7) रविवारSunday
 

विराम चिह्न (Punctuation Mark)

विराम चिह्न (Punctuation Mark)


विराम चिह्न (Punctuation Mark) की परिभाषा

भित्र-भित्र प्रकार के भावों और विचारों को स्पष्ट करने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग वाक्य के बीच या अंत में किया जाता है, उन्हें 'विराम चिह्न' कहते है। 
दूसरे शब्दों में- विराम का अर्थ है - 'रुकना' या 'ठहरना' । वाक्य को लिखते अथवा बोलते समय बीच में कहीं थोड़ा-बहुत रुकना पड़ता है जिससे भाषा स्पष्ट, अर्थवान एवं भावपूर्ण हो जाती है। लिखित भाषा में इस ठहराव को दिखाने के लिए कुछ विशेष प्रकार के चिह्नों का प्रयोग करते हैं। इन्हें ही विराम-चिह्न कहा जाता है।
सरल शब्दों में- अपने भावों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए या एक विचार और उसके प्रसंगों को प्रकट करने के लिए हम रुकते हैं। इसी को विराम कहते है।
इन्हीं विरामों को प्रकट करने के लिए हम जिन चिह्नों का प्रयोग करते है, उन्हें 'विराम चिह्न' कहते है।
यदि विराम-चिह्न का प्रयोग न किया जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। 
जैसे- (1)रोको मत जाने दो। 
(2)रोको, मत जाने दो।
(3)रोको मत, जाने दो।