Sunday 27 January 2019

GDS की वर्दी और मैं
#gds_jaihind
#26_january
#वर्दीधारी

वर्दी क्या है, वर्दी की महत्ता क्या है, वर्दी कौन पहनता है, आदि न जाने कितने ही सवाल वर्दी पर किए जा सकते हैं और उन सभी सवालों का जवाब किशन बाहेती जी ने अपने आलेख में दे दिया है तो उस पर कुछ लिखने का कोई फायदा है नहीं, आप उस आलेख का पढ़ना चाहते हैं तो इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।
https://www.facebook.com/groups/GhumakkariDilSe/permalink/2180470392014423/

अब मैं GDS की वर्दी की अपनी कहानी आपसे शेयर करता हूं। अप्रैल 2017 में GDS फेसबुक पर जुड़ा और उसके दस दिन बाद ही मैं जबरदस्ती व्हासट्सएप्प में भी घुस गया। तब हमने देखा कि कुछ लोग टीशर्ट और टोपी पहने हुए फोटो लगा रखे हैं। हमने रितेश गुप्ता से कहा कि मुझे भी ऐसी टीशर्ट और टोपी चाहिए, तो उन्होंने मुझे संजय कौशिक जी से संपर्क करने के लिए कहा। रितेश गुप्ता ने मुझे जोड़ा था इसलिए उनसे तो बातचीत हुई थी लेकिन ये संजय कौशिक कौन हैं मुझे नहीं पता था। खैर फेसबुक पर खोजा तो कौशिक जी भी मिल गए। हमने उनसे कहा कि मुझे टीशर्ट और टोपी चाहिए तो उन्होंने मेरी अगली यात्रा के बारे में पूछा तो हमने कहा कि 15 दिन बात मुझे तिरुपति, रामेश्वरम, कन्याकुमारी और त्रिवेंद्रम जाना है उससे पहले दे दीजिएगा, लेकिन हमारे 15 दिन को उन्होंने 15 जून समझ लिया और हो गई गड़बड़।

हम 7 जून को तिरुपति के लिए प्रस्थान कर गए तब उनको याद आया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और हम अपनी यात्रा पर चले गए। वापसी में मुंबई में प्रतीक गांधी और बुआ जी (दर्शन कौर धनोय) मुझसे स्टेशन पर मिलने आए तो हमने पहली बार GDS का बैनर देखा तो हमने टीशर्ट-टोपी के साथ बैनर भी मांग लिए तो रितेश गुप्ता ने मुझे बैनर का कोरल फाइल भेज दिया जिसे हमने पिं्रट करवा लिया और लेकर चंद्रशिला चोटी पर पहुंच गए और अपने साथ पांच और लोगों को लेकर गए। उसके बाद एक दिन कौशिक जी ने फोन किया कि आपको टीशर्ट-टोपी देने में देर हो गई तो टीशर्ट तो नहीं है टोपी पहुंचवा देते हैं।

उसके लिए मुझे अनिल दीक्षित से सपंर्क करना था और उनसे बात हुई तो मिलने के स्थान का चयन हुआ और उसके बाद हमने अपने दुपहिया से उनके चौपहिया का पीछा करके सड़क पर दौड़ते-भागते आधा दर्जन टोपी, कलम और बैज अपने कब्जे में लिया और उसके बाद उज्जैन, ओंकारेश्वर की यात्रा पर निकल गया। उसके बाद समय आया रांसी में GDS मिलन का। एक दिन अचानक ही किशन बाहेती जी का फोन आता है कि आप अपने टीशर्ट का साइज बताइए। अब टीशर्ट के साइज से एक बात समझ नहीं आया कि हम कौन सा साइज बताएं क्योंकि हमने तो आज तक टीशर्ट पहने ही नहीं था तो साइज का क्या पता फिर अपने ही कद-काठी वाले आदमी से उसके टीशर्ट का साइज पूछा और बता दिया और मेरे लिए भी GDS का वर्दी बन गया और साथ में टोपी भी मिल गया। हमने अब तक कभी टीशर्ट पहना नहीं था और पहना भी तो एक वर्दी के रूप में जिसमें मेरी एक फोटो बहुत अच्छी आई है उस फोटो के लिए अनुराग चतुर्वेदी और देवेंद्र कोठारी जी को बहुत बहुत धन्यवाद।

उसके बाद तो हम अब कहीं भी जाते हैं उस वर्दी को साथ जरूर ले जाते हैं और यदा-कदा अनजान लोगों को भी टोपी पहना आते हैं। सबसे अंत का वाकया याद आता है तो अपने मध्यमहेश्वर यात्रा की याद आती है। जब मैं और बीरेंद्र भैया सुबह सुबह कांपते हुए मध्यमहेश्वर से बूढ़ामध्यमहेश्वर पहुंचे तो हमारे साथ ही चार और लोग वहां पहुंचे। हमने जैसे ही बैनर निकाला तो उन्होंने उस बैनर का परिचय पूछा। सब कुछ बताने के बाद उन्होंने उस बैनर के साथ शौक से फोटो खिंचवाया और टोपी टीशर्ट देखते ही उस पर भी भूखे शेर की तरह टूट पड़े। अब टोपी एक और वो पांच तो काम कैसे बने तो हुआ ये कि बैनर के साथ पांचों एक साथ खड़े होंगे और बारी बारी से टोपी लगाकर फोटो खिंचवाएंगे। उनको ऐसे करते इतनी खुशी हुई थी कि पूछिए मत। 

ऐसे ही एक वाकया याद आता है कि एक दिन बेटे ने कहा कि पापाजी मेरे एक दोस्त बता रहा था कि उसके पिताजी एक दिन फेसबुक चला रहे थे तो और वो पास ही में बैठा हुआ था तो तुम्हारे पापा का एक फोटो दिख गया जिसमें वो एक GDS लिखा हुआ टोपी और टीशर्ट पहने हुए हैं तो ये GDS क्या है तो मैंने सब कुछ बता दिया कि GDS क्या है। अब तो कहीं घूमने जाता हूं तो टोपी-टीशर्ट और बैनर देखकर लोग इतने उत्सुकता से पूछते हैं कि कुछ कहिए मत। वो जितनी उत्सुकता से पूछते हैं उससे ज्यादा आनंद लेकर हम GDS का परिचय उनको देते हैं। सब कुछ जानकर वो भी बहुत खुश होते हैं। अब आज के पोस्ट में इतना ही, क्योंकि अगर GDS के वर्दी-बैनर पर लिखने लगा तो कई पन्नों की रिपोर्ट तैयार हो जाएगी।

अरे हां एक बात तो हम भूल ही गए, जब हम मध्यमहेश्वर मंदिर पर बैनर के साथ फोटो खिंचवा रहे थे तो वहां के एक कर्मचारी ने अचानक ही पूछ दिया कि इस बैनर के साथ पिछले साल भी कुछ लोग फोटो खिंचवा रहे थे तब हमने कुछ नहीं सोचा था लेकिन आज आपको फिर वैसे ही बैनर के साथ देखकर मन में उत्सुकता हुई और पूछ लिया। अगर कोई दिक्कत न हो तो मुझे बता सकते हैं क्या कि ये क्या है? फिर हमने उनको बैनर की पूरी कथा सुनाई तो वो भी कहने लगे कि ये तो बहुत अच्छा है कि बिना जान-पहचान के भी लोग एक दूसरे से जुड़ रहे हैं और सबका एक ही धर्म है और वो है घुमक्कड़ी।

सभी फोटो : बूढ़ा मध्यमहेश्वर, 30 सितम्बर 2018

Friday 25 January 2019

दिल से ............... दिल तक

इंसान को सभी रिश्ते बने बनाए मिलते हैं और उन रिश्तों को उन रिश्तों को भरपूर तरीके से निभाते थे। धीरे धीरे समय बदला और लोग बने-बनाए रिश्तों से हटकर दूर-दराज में बसे अनजान लोगों से एक रिश्ता बनाने लगे और ऐसा नहीं था कि अनजान लोगों से ये रिश्ते पहले नहीं बनते थे। पहले भी अनजान लोगों से दोस्ती का एक रिश्ता बनता था तो बहुत ही स्नेह से निभाया जाता था। हमारे परदादा (दादा के पिताजी) ने भी एक ऐसा ही रिश्ता कहीं दूर से बनाया था जो चार पीढि़यां बीत जाने के बाद भी आज भी वैसे ही जीवंत है जैसा परदादा के समय में हुआ करता था। दोनों तरफ के परिवार बढ़े और दूर-दराज के जगहों पर जाकर बसे लेकिन वो रिश्ता आज भी उसी मिठास के साथ हमारे साथ-साथ चल रहा है। आज भी उस तरह के रिश्ते बन रहे हैं जिन्हें हम नहीं जानते और लेकिन हम उनसे जुड़ जाते हैं और कुछ दूर तक या बहुत दूर तक साथ निभाते हैं।

बदलते समय में सब कुछ बदला और एक सोशल मीडिया ने आकार लिया जो कई नामों से हमारे बीच जाना जाता है। उसी सोशल मीडिया पर लोग एक दूसरे से जुड़ने लगे और रिश्तों की डोर में बंधने लगे। कुछ लोग कहते हैं कि ये सोशल मीडिया तो बस ये है, वो है, बेकार है आदि आदि, जितने लोग उतने तरह की बातें। कुछ कहते हैं बस ये रिश्ते मोबाइल और कंप्यूटर तक ही जीवंत रहते हैं, कुछ कहते हैं कि आपके दुख में जरूरत पड़ने पर ये रिश्ते आपसे दूर भाग जाते हैं, तो कुछ कहते हैं कि खुद की खुशियों के समय में ये रिश्ते भी अपने तक ही सीमित रह जाते हैं और इंटरनेट पर बने ये रिश्ते उन्हें याद तक नहीं आते। जो ऐसा कहते हैं उनका कहना भी गलत नहीं है। हर दिन हर व्यक्ति का दो-चार-दस लोगों से परिचय होता है और दो-चार दिन के बाद वो परिचय समाप्त हो जाता है और फिर से अनजान बन जाते हैं लेकिन कुछ लोगों का परिचय एक बंधन में बंध जाता है जिसमें प्यार, प्रेम, स्नेह, आशीर्वाद सब कुछ होता है और एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होने की ललक भी होती है।

जिस सोशल मीडिया को कुछ लोग अच्छा, कुछ लोग बुरा, तो कुछ लोग टाइम पास और भी न जाने क्या-क्या कहते हैं, उसी सोशल मीडिया में लोग ग्रुपों का निर्माण करने लगे और उन्हीं ग्रुपों में एक ग्रुप ने आकार लिया जिसका नाम है GDS (घुमक्कड़ी दिल से), जो अब एक सोशल मीडिया का एक ग्रुप न रहकर एक परिवार में तब्दील हो चुका है, जहां बुआ, दीदी, भाई आदि रिश्ते मौजूद हैं। इसी GDS परिवार में मुम्बई निवासी दर्शन कौर धनोय हैं जिन्हें बुआ की उपाधि से सम्मानित किया गया है और उस नाम को उन्होंने हृदय से स्वीकार भी किया है और केवल स्वीकार ही नहीं किया उसे निभा भी रही हैं।

अभी 22 जनवरी 2019 इन्हीं बुआ जी की बेटी की शादी में शामिल होकर लौटा हूं। बुआ जी ने हम सब घुमक्कडों को शादी में शामिल होने के लिए स्नेहपूर्वक आमंत्रित किया और जिसे लोगों ने दिल से स्नेहपूर्वक सहर्ष स्वीकार किया। जब शादी का दिन तय हुआ था तभी इन्होंने सबको अपनी तरफ से शादी की तिथि की सूचना सबको दे दिया था कि अमुक तिथि को शादी है। उसके बाद ऐसा भी नहीं कि निमंत्रण देने के बाद इनका काम खत्म हो गया था। बुआ जी का असली काम तो अब शुरू था कि कौन-कौन आएगा, कौन नहीं आ पाएगा, और आएगा तो किस साधन से आएगा, किस तरह पहुंचेगा, कहां रुकेगा आदि आदि। शादी से करीब दो महीने पहले इन्होंने एक व्हाट्सएप्प ग्रुप बनाकर सबको इकट्ठा किया और आने-जाने की सारी जानकारियां आदि की जानकारी देती और लेती रहीं। कौन किस दिन पहुंचेगा, किस साधन से पहुंचेगा, किसकी टिकट बन गई, किसकी नहीं बनी आदि आदि जानकारियां वो लेती रही।

आज की भागती दौड़ती जिंदगी में जहां लोग अपने सगे-संबंधियों और नाते-रिश्ते को भूलते जा रहे हैं वहां आभासी दुनिया से बने रिश्तों से ऐसे खुशी के मौके पर जब आमंत्रण आता है तो मन अपने आप गुलाब के फूलों की तरह खिल उठता है, बिना बरसात के भी मन के आसमान में बरसने वाले बादल दौड़ने लगते हैं। मन में एक अलग तरह की खुशियों का संचार होने लगता है। जहां हमारे जन्म से बने-बनाए रिश्ते अपनी खुशियों में हमें शामिल करना छोड़ रहे हैं वहां आभासी दुनिया से जुड़े लोग अपनी खुशियों में शामिल होने के लिए बुलावा भेजते हैं तो आंखों से दो बूंद अवश्य छलकते हैं जिसमें कुछ खुशियां भी होती है और कुछ गम भी। गम इस बात का कि जो हमारे थे वो मुझे भूलने लगे हैं और खुशी इस बात की जिनको हम केवल नाम से जानते हैं, कभी देखा नहीं, कभी मिला नहीं वो हमें अपने पास बुला रहे हैं।

शादी का कार्यक्रम 21 और 22 जनवरी को जयपुर में था जिसमें कई लोग देश के विभिन्न हिस्सों से वहां पहुंचे। शादी में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कई सारे साथी तैयार हुए लेकिन कुछ साथियों का आवश्यक कार्यों के कारण शादी में उपस्थित होना मुश्किल हो गया और वो वहां तक नहीं पहुंच सके। कुछ साथियों ने समय निकाला और शादी में उपस्थित हुए। वहां पहुंचने वाले लोगों में संजय कौशिक (सोनीपत), रुपेश शर्मा (ग्रेटर नोएडा), अभ्यानन्द सिन्हा (दिल्ली), संगीता बलोदी (मुम्बई), चारु दुबे (मुम्बई), रितेश गुप्ता (आगरा से सपरिवार), देवेन्द्र कोठारी (जयपुर से सपरिवार) और सुशांत सिंघल (सहारनपुर) थे। कुछ और नाम हैं जो किसी कारणवश वहां नहीं पहुंच सके लेकिन उनका मन उस शादी में ही लगा था, तभी कुछ कुछ देर पर उन लोगों के फोन और मैसेज आ रहे थे। ये फोन और मैसेज आना ये बता रहे थे कि वो यहां न आकर भी हमारे साथ हैं।

शादी में शामिल होने के हिसाब से सभी लोगों को 21 जनवरी को किसी समय पहुंचना था लेकिन सभी भाई-बंधु के मन में शादी में शामिल होने की ऐसी ललक लगी हुई थी कि उससे भी एक दिन पहले वहां पहुंच गए और कोठारी जी (देवेंद्र कोठारी और कंचन कोठारी) जी के यहां डेरा डाल दिए। ऐसा भी नहीं कि वहां जाकर केवल डेरा डाले, वहां पहुंचकर कोठारी जी (सपरिवार) के साथ दो दिनों तक जयपुर में घुमक्कड़ी करते रहे। कोठारी जी के यहां भी हम सब पहली ही बार गए थे लेकिन उनके यहां जो प्यार और स्नेह मिला उसके लिए क्या कहें, कहां से ऐसे शब्द लाएं जो उनके स्नेह को दर्शा सके, शब्द नहीं हैं हमारे पास उस स्नेह को दर्शाने के लिए। दो दिनों तक हम कोठारी जी के यहां रहे और जो अपनापन और स्नेह उन्होंने बरसाया कि क्या कहूं। वो कहते हैं कि बरसात में तो केवल तन भीगता है लेकिन उनके स्नेह ने हम सबके मन को भीगो दिया। दो दिन तक हर मिनट दर मिनट दोनों ने हम सबका खयाल रखा और इतना ही नहीं दो दिनों तक सुबह से लेकर रात तक और फिर सुबह से लेकर शाम तक सबको जयपुर के दर्शनीय स्थलों की सैर कराते रहे। उनके साथ बिताए हुए ये पल पूरी जिंदगी में एक मिनट के लिए भी धुंधली नहीं पड़ेगी। गुड़ की मिठास तो कुछ देर के लिए होती है लेकिन उनके प्रेम की मिठास बस पूछिए मत।

अरे हां, इन सब विवरणों में एक और दम्पत्ति की कहानी तो छूट ही गई, वो हैं संजय कौशिक जी के मित्र राकेश गुलिया और उनकी पत्नी मीनाक्षी गुलिया। वैसे तो मीनाक्षी जी से हम सबकी मुलाकात GDS के जोधपुर सम्मेलन में हुई थी और तभी उन्होंने अपने घर आने का न्यौता दिया था। वो न्यौता पूरा करने का दिन इतनी जल्दी आएगा इसका पता नहीं था। जैसे ही संजय कौशिक द्वारा पता चला कि हम लोग उधर से ही गुजर रहे हैं तो उन्होंने सीधा प्रेम मिश्रित आदेश दिया कि बिना घर गए यहां से आगे नहीं बढ़ सकते। अब उस प्रेम मिश्रित आदेश को ठुकराने की हिम्मत तो किसी में नहीं थी तो जयपुर से दिल्ली जाते हुए उनके घर पर पहुंच गए।

वहां पहुंचा तो देखते ही आश्चर्य की सीमा नहीं रही। हम लोगों के पहुंचने से पहले ही पूरे भोज की तैयारी उन दोनों ने कर रखा था। वो बाजरे की रोटी, तरह तरह की चटनियां, ताजे ताजे दही से निकाले हुए कटोरा भर के मक्खन और बाल्टी भर के मट्ठा (लस्सी), गुड़ और भी न जाने कई चीजें। वहां बैठकर हम लोगों ने जो खाना शुरू किया तो क्या कहें बस खाते ही चले गए और मेरी खुद की हालत ऐसी हुई कि हम उठने लायक भी नहीं रहे। खाने के बाद दो लोगों ने जब उठाया तो हम ठीक से उठ पाए। वापसी में भी उनका आदेश था कि चाहे जिस समय भी गुजरे यहां से होकर ही जाना है। अब वापसी में समय ऐसा कि जब वहां से गुजर रहे थे रात के करीब एक बज रहे थे और उनसे मिलना भी जरूरी था क्योंकि ये उनका आदेश था। पहले तो लगा कि इतनी रात में जगाना ठीक नहीं है लेकिन न जाने पर भी उनको दुख होता तो फिर पहुंच गए रात को एक बजे उनको परेशान करने और चाय पीकर और कुछ मीठी-प्यारी बातें करने के बाद फिर आगे के सफर पर चल पड़े थे। उनके यहां भी जो प्यार और अपनापन मिला वो कभी न भूलने वाले पलों में शामिल हुआ। उनकी मुलाकात लस्सी में मिले गुड़ की तरह तन-मन में बस गया।

कोठारी दम्पत्ति और गुलिया दम्पत्ति की मुलाकात पर कहने के लिए हमारे पास शब्द नहीं है। फिर भी इतना तो कह ही सकते हैं कि आज के समय जहां लोग मिलने के नाम पर बहाने बना लेते हैं कि हम बाहर जा रहे हैं, उस दिन हमें काम है और हम उपलब्ध नहीं होंगे, आदि आदि न जाने कितने बहाने। वहीं आभासी दुनिया में केवल नाम से परिचय होने के बावजूद रास्ते में स्वागत के लिए अपनी पलकें बिछाए जब ऐसे लोग तैयार मिलते हैं तो मन का मयूर ऐसे नाचता है जैसे बारहों महीने सावन हो, मन में बसी कलियां ऐसे खिलती है जैसे बसंत आ गया हो। अंततः यहीं कह सकते हैं कि जहां प्रेम मिले वहीं मन लगता है।

जब बुआ का निमंत्रण आया था तो लगा था कि अनजान जगह, अनजान लोग, अनजान शहर में कैसा महसूस होगा लेकिन वहां पहुंचकर हमें लगा ही नहीं कि हम किसी अनजान जगह पर अनजान लोगों के बीच आए हैं। मुझे लगता है कि शायद यही भाव बुआ के मन में उठ रहा होगा कि शादी में शामिल होने के लिए इतने लोगों को बुलाया है, पता नहीं उनको यहां आकर अच्छा लगेगा या नहीं लगेगा, वो लोग यहां आकर कैसा महसूस करेंगे, और इसके अलावा भी न जाने उनके मन में हमारी तरह कितने भाव आते-जाते रहे होंगे। पर बुआ जी एक बात हम अपनी तरफ से और वहां पहुंचे सभी साथियों की तरफ से आपको बताते हैं, लेकिन आप इसे अपने तक ही सीमित रखिएगा किसी को बताइएगा नहीं। बुआ जी, हम सभी ने पूरा पूरा आनंद लिया वहां जाकर, बहुत मजा आया था, वहां से आने का मन नहीं कर रहा था फिर भी आना पड़ा। वहां बिताए हर पल हम लोगों के लिए एक यादगार पल के रूप में सदा ही साथ रहेगा। आपसे इतना प्यार और स्नेह मिला उसके लिए कुछ कह नहीं सकता। बस यही कि बार बार ऐसे मौके पर जाने का मौका मिले।

जब हम अपने रिश्तेदारी में शादी में जाते हैं तो सभी लोग पहले से परिचित होते हैं लेकिन यहां हम सबके लिए वहां उपस्थित सभी लोग अपरिचित थे लेकिन हम सबके वहां पहुंचने पर बुआ ने वहां उपस्थित लोगों से हम सबका परिचय करवा दिया जिससे हमें कहीं अहसास ही नहीं हुआ कि हम ऐसे जगह हैं जहां हमें कोई नहीं जानता। बुआ की बचपन कुछ सहेलियों को भी हम लोगों ने बुआ बना दिया जिनमें दो के नाम हैं अलजीरा लोबो और रुक्मिणी मुंदरा। बुआ ने इस शादी में बुलाकर एक नई परम्परा को जन्म दिया है, एक नए सफर की शुरुआत किया है जिसमें हम उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की कोशिश करेंगे। कोशिश इसलिए कि कोशिशें ही कामयाब होती है, वादों का क्या वो तो टूट जाते हैं।

इस शादी में आना जाना और आपसी संबंध जिस चीज के कारण है उसका नाम है GDS (घुमक्कड़ी दिल से) और बिना GDS के ये संभव नहीं था। GDS के पूरे नाम में जो दिल शब्द है वो वास्तविक में दिल से ही है, इसे समझने के लिए भी एक दिल चाहिए, दिमाग लगाकर इसे समझ पाना संभव नहीं है, केवल दिल से ही समझ सकते हैं। एक बात जो मैं लिखना भूल ही गया। जब हम सब शादी में शामिल होने के बाद वापिस आ रहे थे तो विदाई मुलाकात के समय विवाह मंडप में पूरे घरातियों और बरातियों के सामने जब बुआ ने कहा कि अब निकालो GDS का बैनर, अब लगाओ अपना नारा जो तुम लोग लगाते हो तो हम सब शब्दहीन हो गए। किसी को इस बात की तो उम्मीद ही नहीं थी कि ऐसा भी हो सकता है। विवाह मंडप में मंच पर इस तरह नारा लगाना बहुत ही मुश्किल काम था। हम लोगों के मना करने के बाद भी बुआ नहीं मानाी और GDS जिंदाबाद, घुमक्कड़ी दिल से....मिलेंगे फिर से का नारा लगवा ही दिया, और उसके बाद हम सबने बुआ से विदाई लिया और मीठी-मीठी यादों को मन में बसाए अपने घर की तरफ चल पड़े।

अब अंत में केवल यही जय GDS और जय GDS।

Thursday 24 January 2019

World GK Questions-1

World GK Questions-1


1. The city which is also known as the City of Canals is Venice
2. The country in which river Wangchu flows is Myanmar
3. The biggest island of the world is Greenland
4. The city which is the biggest centre for manufacture of automobiles in the world is Detroit, USA
5. The country which is the largest producer of manganese in the world is USA
6. The country which is the largest producer of rubber in the world is Malaysia
7. The country which is the largest producer of tin in the world is Malaysia
8. The river which carries maximum quantity of water into the sea is the Mississippi
9. The city which was once called the `Forbidden City' was Peking
10. The first Prime minister of Bangladesh was Mujibur Rehman
11. The longest river in the world is the Nile
12. The longest highway in the world is the Trans-Canada

महत्वपूर्ण GK प्रश्नोत्तरी (Important GK Questionnaires)

महत्वपूर्ण GK प्रश्नोत्तरी (Important GK Questionnaires)



1. भारत के किस राज्य में मानसून का आगमन सबसे पहले होता है?
उत्तर : केरल
2. धान के खेत से निकलने वाली गैस है?
उत्तर : मिथेन
3. विदेशी निगम शासित होते हैं?
उत्तर : भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956 के द्वारा
4. सोयाबीन में नेत्रजन स्थिरीकरण के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया है?
उत्तर : राहिजोबियम जैपेानिकम
5. केन्द्रीय बजट में राजस्व व्यय की सबसे बड़ी मद होती है?
उत्तर : ब्याज की अदायगी
6. बिहू-असम, ओनम-आंध्रप्रदेश, पोंगल- तमिलनाडु एवं वैसाखी- पंजाब में से एक सुमेलित नहीं है?
उत्तर : ओनम-आंध्र प्रदेश

इतिहास प्रश्नोत्तरी (History Questionnaires)

इतिहास प्रश्नोत्तरी (History Questionnaires)



1. भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाने वाला न्यायाधीश कौन था।
उत्तर : जी.सी. हिल्टन
2. महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु कौन थे।
उत्तर : गोपाल कृष्ण गोखले
3. किस एक्ट को बिना अपील, बिना वकील तथा बिला दलील का कानून कहा गया।
उत्तर : रौलेट एक्ट
4. डंडा फौज का गठन किसने किया था।
उत्तर : चमनदीव (पंजाब)
5. निरंकारी आंदोलन की शुरूआत किसने की थी।
उत्तर : दयालदास
6. सबसे कम उम्र में फांसी की सजा पाने वाला क्रांतीकारी कौन था।
उत्तर : खुदीराम बोस

अति महत्वपूर्ण प्रश्न (Most Important Question)-4

अति महत्वपूर्ण प्रश्न (Most Important Question)-4


1. बैडमिंटन कौनसे देश का राष्ट्रीय खेल है।
उत्तर : मलेशिया
2. पाकिस्तान का राष्ट्रीय खेल कौनसा है।
उत्तर : हॉकी
3. घुड़सवारी खेल के मैदान का क्या कहा जाता है।
उत्तर : एरीना
4. साइकिलिंग के मैदान का क्या कहा जाता है।
उत्तर : वेलोड्रम
5. बोरलॉग पुरस्कार किस क्षेत्र में दिया जाता है।
उत्तर : कृषि क्षेत्र
6. महलों का शहर के नाम से कौनसा शहर जाना जाता है।
उत्तर : कोलकाता

अति महत्वपूर्ण प्रश्न (Most Important Question)-3

अति महत्वपूर्ण प्रश्न (Most Important Question)-3



1. भारतीय संविधान में नीति निर्देशक तत्व किस देश से लिए गए हैं।
उत्तर : आयरलैंड
2. भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार किस देश से लिए गए हैं।
उत्तर : अमेरिका
3. भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया किस देश से ली गई है।
उत्तर : दक्षिण अफ्रीका
4. भारतीय संविधान में आपातकाल के प्रवत्र्तन के दौरान राष्ट्रपति को मौलिक अधिकार संबंधी शक्तियां किस देश से ली गई हैं।
उत्तर : जर्मनी
5. पाकिस्तान के लिए पृथक संविधान सभा की स्थापना की घोषण कब की गई।
उत्तर : 26 जुलाई 1947
6. मनुष्य में गुणसूत्रों की संख्या कितनी होती है।
उत्तर : 46

अर्थशास्त्र प्रश्नोत्तरी (Economics Questionnaire)-5

अर्थशास्त्र प्रश्नोत्तरी (Economics Questionnaire)-5



1. भारत में प्रच्छन्न बेरोजगारी सामान्यतः कहाँ दिखाई पड़ती है ?
उत्तर : कृषि में
2. भारत में निर्धनता के स्तर का आकलन किससे किया जाता है?
उत्तर : परिवार के उपभोग व्यय के आधार पर
3. हरित सूचकांक किसके द्वारा विकतिस किया गया था?
उत्तर : संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम
4. भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण का अग्रदूत किसे माना जाता है?
उत्तर : डॉ. मनमोहन सिंह
5. अर्थव्यवस्था में क्षेत्रों को सार्वजनिक और निजी में किस आधार पर वर्गीकृत किया जाता है?
उत्तर : उद्यमों के स्वामित्व के आधार पर
6. भारतीय में सर्वप्रथम राष्ट्रीय आय का अनुमान किसने लगाया था?
उत्तर : दादाभाई नौरोजी ने