Saturday, 10 July 2021

कार्यालयीय आलेखन (Official Drafting)

कार्यालयीय आलेखन (Official Drafting)

आलेखन पत्राचार का एक अंग है। समाज के विकास के साथ आलेखन के भित्र-भित्र रूप विकसित होते रहे हैं। विशेषकर सरकारी सेवाओं में और कार्यालयों में काम करनेवालों के लिए आलेखन में निपुण होना आवश्यक है। इसकी कुशलता दो बातों पर निर्भर है-
(1) भाषा का अच्छा ज्ञान और (2) आलेखन के विविध रूपों और उसके विशिष्ट नियमों की जानकारी। आलेखन की सफलता शुद्ध, सुगठित और परिमार्जित भाषा पर निर्भर है। यहाँ आलेखन से हमारा तात्पर्य सरकारी कार्यालय में व्यवहृत आलेखनों से है। इसे 'प्रारूप' भी कहते हैं।

आलेखन के प्रकार

आलेखन दो प्रकार के होते है-
(1) प्रारम्भिक आलेखन (Elementary Drafting)
(2) उत्रत अथवा उच्चतर आलेखन (Advanced Drafting) ।

निबन्ध-लेखन (Essay-writing)

निबन्ध-लेखन (Essay-writing)



निबन्ध- अपने मानसिक भावों या विचारों को संक्षिप्त रूप से तथा नियन्त्रित ढंग से लिखना 'निबन्ध' कहलाता है। निबन्ध लिखना भी एक कला हैं। इसे विषय के अनुसार छोटा या बड़ा लिखा जा सकता है।

हिन्दी का 'निबन्ध' शब्द अँगरेजी के 'Essay' शब्द का अनुवाद है। अँगरेजी का 'Essay' शब्द फ्रेंच 'Essai' से बना है। Essai का अर्थ होता है- To attempt', अर्थात 'प्रयास करना' । 'Essay' में 'Essayist' अपने व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करता है, अर्थात 'निबन्ध' में 'निबन्धकार' अपने सहज, स्वाभाविक रूप को पाठक के सामने प्रकट करता है। आत्मप्रकाशन ही निबन्ध का प्रथम और अन्तिम लक्ष्य है।

आधुनिक निबन्धों के जन्मदाता फ्रान्स के मौन्तेन माने गये है। उनके अनुसार 'निबन्ध विचारों, उद्धरणों एवं कथाओं का सम्मिश्रण है। '' अपनी बात को स्पष्ट करते हुए वे आगे लिखते है: ;अपने निबन्धों का विषय स्वयं मैं हूँ। ये निबन्ध अपनी आत्मा को दूसरों तक पहुँचाने के पर्यत्नमात्र हैं। इनमें मेरे निजी विचार और कल्पनाओं के अतिरिक्त कोई नूतन खोज नहीं है।

संवाद-लेखन (Dialogue-writing)

संवाद-लेखन (Dialogue-writing)

दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच हुए वार्तालाप या सम्भाषण को संवाद कहते हैं।
दूसरे शब्दों में- दो व्यक्तियों की बातचीत को 'वार्तालाप' अथवा 'संभाषण' अथवा 'संवाद' कहते हैं।

संवाद का सामान्य अर्थ बातचीत है। इसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति भाग लेते है। अपने विचारों और भावों को व्यक्त करने के लिए संवाद की सहायता ली जाती है। जो संवाद जितना सजीव, सामाजिक और रोचक होगा, वह उतना ही अधिक आकर्षक होगा। उसके प्रति लोगों का खिंचाव होगा। अच्छी बातें कौन सुनना नहीं चाहता? इसमें कोई भी व्यक्ति अपने विचार सरल ढंग से व्यक्त करने का अभ्यास कर सकता है।

वार्तालाप में व्यक्ति के स्वभाव के अनुसार उसकी अच्छी-बुरी सभी बातों को स्थान दिया जाता है। इससे छात्रों में तर्क करने की शक्ति उत्पत्र होती है। नाटकों में वार्तालाप का उपयोग सबसे अधिक होता है। इसमें रोचकता, प्रवाह और स्वाभाविकता होनी चाहिए। व्यक्ति, वातावरण और स्थान के अनुसार इसकी भाषा ऐसी होनी चाहिए जो हर तरह से सरल हो। इतना ही नहीं, वार्तालाप संक्षिप्त और मुहावरेदार भी होना चाहिए।

कहानी-लेखन (Story-writing)

कहानी-लेखन (Story-writing)

 
जीवन की किसी एक घटना के रोचक वर्णन को 'कहानी' कहते हैं।

कहानी सुनने, पढ़ने और लिखने की एक लम्बी परम्परा हर देश में रही है; क्योंकि क्योंकि यह मन को रमाती है और सबके लिए मनोरंजक होती है। आज हर उम्र का व्यक्ति कहानी सुनना या पढ़ना चाहता है यही कारण है कि कहानी का महत्त्व दिन-दिन बढ़ता जा रहा है। बालक कहानी प्रिय होते है। बालकों का स्वभाव कहानियाँ सुनने और सुनाने का होता है। इसलिए बड़े चाव से बच्चे अच्छी कहानियाँ पढ़ते हैं। बालक कहानी लिख भी सकते हैं। कहानी छोटे और सरल वाक्यों में लिखी जाती है।

बच्चे अपनी दादी, नानी और माँ से तरह-तरह की कहानियाँ बड़ी रुचि से सुनते हैं। छोटी-छोटी कहानी लिखने में अभ्यास और कल्पना की आवश्यकता है। निम्नवर्ग के विद्यार्थियों को पहले चित्र देखकर और कहानी के संकेत पढ़कर कहानी लिखने का अभ्यास करना चाहिए। यहाँ ध्यान देने की बात है कि कहानी रोचक और स्वाभाविक हो। घटनाओं का पारस्परिक संबंध हो, भाषा सरल हो और कहानी से कोई-न-कोई उपदेश मिलता हो। अंत में, कहानी का एक अच्छा शीर्षक या नाम दे देना चाहिए।

सारांश (Summary)

सारांश (Summary)


मूल अवतरण के भावों अथवा विचारों को संक्षेप में लिखने की क्रिया को 'सारांश' कहते हैं।

मूल में जो बात विस्तार से कही गयी है, 'सारांश' में उतनी ही बात संक्षेप में, सार-रूप में कहनी या लिखनी पड़ती है।
विस्तार और विश्लेषण करने की यहाँ आवश्यकता नहीं। भाषा सरल और सुबोध होनी चाहिए। दूसरी बात यह है कि सारांश मूल अवतरण से छोटा होना चाहिए।

उदाहरण : उद्योग-धंधों में काम करनेवाला मनुष्य जनसाधारण के जीवन और उसके सभी कार्यो पर प्रभाव डालता है और इस प्रकार सबसे अच्छी व्यावहारिक शिक्षा देता है। स्कूल और कॉलेज तो केवल प्रारंभिक शिक्षा देते है, पर कल-कारखानों में काम करनेवाले लोगों से जो शिक्षा मिलती है, वह स्कूल कॉलेज की शिक्षा से कहीं अधिक प्रभावशाली है।

सारांश : स्कूलों-कॉलेजों में लड़के सैद्धांतिक शिक्षा पाते हैं, पर उद्योगशील मनुष्य अपने कार्यो द्वारा व्यावहारिक शिक्षा देते हैं, व्यावहारिक शिक्षा सैद्धांतिक शिक्षा से अधिक प्रभावशाली होती है।

विलोम शब्द (Antonyms)


विलोम शब्द (Antonyms)

एक़-दूसरे के विपरीत या उल्टा अर्थ देने वाले शब्द विलोम कहलाते है।
सरल शब्दों में- जो शब्द किसी दूसरे शब्द का उल्टा अर्थ बताते हैं, उन्हें विलोम शब्द या विपरीतार्थक शब्द कहते है। जैसे- अपेक्षा- नगद, आय- व्यय, आजादी-गुलाम, नवीन- प्राचीन शब्द एक दूसरे के उलटे अर्थ वाले शब्द है। अतः इन्हें 'विलोम शब्द' कहते हैं।

अत: विलोम का अर्थ है- उल्टा या विरोधी अर्थ देने वाल़ा।
विलोम शब्द अपने सामनेवाले शब्द के सर्वदा विपरीत अर्थ प्रकट करते हैं।

शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र (Etymology)

शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र (Etymology)

दो या दो से अधिक वर्णो से बने ऐसे समूह को 'शब्द' कहते है, जिसका कोई न कोई अर्थ अवश्य हो।
दूसरे शब्दों में- ध्वनियों के मेल से बने सार्थक वर्णसमुदाय को 'शब्द' कहते है।
इसे हम ऐसे भी कह सकते है- वर्णों या ध्वनियों के सार्थक मेल को 'शब्द' कहते है।
जैसे- सन्तरा, कबूतर, टेलीफोन, आ, गाय, घर, हिमालय, कमल, रोटी, आदि।
इन शब्दों की रचना दो या दो से अधिक वर्णों के मेल से हुई है। वर्णों के ये मेल सार्थक है, जिनसे किसी अर्थ का बोध होता है। 'घर' में दो वर्णों का मेल है, जिसका अर्थ है मकान, जिसमें लोग रहते हैं। हर हालत में शब्द सार्थक होना चाहिए। व्याकरण में निरर्थक शब्दों के लिए स्थान नहीं है।
शब्द और पद- यहाँ शब्द और पद का अंतर समझ लेना चाहिए। ध्वनियों के मेल से शब्द बनता है। जैसे- प+आ+न+ई- पानी। यही शब्द जब वाक्य में अर्थवाचक बनकर आये, तो वह पद कहलाता है।
जैसे- पुस्तक लाओ। इस वाक्य में दो पद है- एक नामपद 'पुस्तक' है और दूसरा क्रियापद 'लाओ' है।

वचन (Vachan)

वचन (Vachan)

 

शब्द के जिस रूप से एक या एक से अधिक का बोध होता है, उसे हिन्दी व्याकरण में 'वचन' कहते है।
दूसरे शब्दों में- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया के जिस रूप से संख्या का बोध हो, उसे 'वचन' कहते है।
वचन का शाब्दिक अर्थ है- 'संख्यावचन'। 'संख्यावचन' को ही संक्षेप में 'वचन' कहते है। वचन का अर्थ कहना भी है।
जैसे- लड़का= एक लड़का;
लड़के= अनेक लड़के।

वचन के प्रकार

वचन के दो भेद होते हैै-
(1) एकवचन 
(2)बहुवचन 
(1)एकवचन :- संज्ञा के जिस रूप से एक व्यक्ति या एक वस्तु होने का ज्ञान हो, उसे एकवचन कहते है।
जैसे- स्त्री, घोड़ा, नदी, रुपया, लड़का, गाय, सिपाही, बच्चा, कपड़ा, माता, माला, पुस्तक, टोपी, बंदर, मोर आदि।
(2)बहुवचन :-शब्द के जिस रूप से एक से अधिक व्यक्ति या वस्तु होने का ज्ञान हो, उसे बहुवचन कहते है।
जैसे- स्त्रियाँ, घोड़े, नदियाँ, रूपये, लड़के, गायें, कपड़े, टोपियाँ, मालाएँ, माताएँ, पुस्तकें, वधुएँ, गुरुजन, रोटियाँ, लताएँ, बेटे आदि।