कारक (Case)
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका (संज्ञा या सर्वनाम का) सम्बन्ध सूचित हो, उसे (उस रूप को) 'कारक' कहते हैं।
अथवा- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उनका (संज्ञा या सर्वनाम का) क्रिया से सम्बन्ध सूचित हो, उसे (उस रूप को) 'कारक' कहते हैं।
अथवा- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उनका (संज्ञा या सर्वनाम का) क्रिया से सम्बन्ध सूचित हो, उसे (उस रूप को) 'कारक' कहते हैं।
इन दो 'परिभाषाओं' का अर्थ यह हुआ कि संज्ञा या सर्वनाम के आगे जब 'ने', 'को', 'से' आदि विभक्तियाँ लगती हैं, तब उनका रूप ही 'कारक' कहलाता हैं।
तभी वे वाक्य के अन्य शब्दों से सम्बन्ध रखने योग्य 'पद' होते है और 'पद' की अवस्था में ही वे वाक्य के दूसरे शब्दों से या क्रिया से कोई लगाव रख पाते हैं। 'ने', 'को', 'से' आदि विभित्र विभक्तियाँ विभित्र कारकों की है। इनके लगने पर ही कोई शब्द 'कारकपद' बन पाता है और वाक्य में आने योग्य होता है। 'कारकपद' या 'क्रियापद' बने बिना कोई शब्द वाक्य में बैठने योग्य नहीं होता।