GDS की वर्दी और मैं
#gds_jaihind
#26_january
#वर्दीधारी
वर्दी क्या है, वर्दी की महत्ता क्या है, वर्दी कौन पहनता है, आदि न जाने कितने ही सवाल वर्दी पर किए जा सकते हैं और उन सभी सवालों का जवाब किशन बाहेती जी ने अपने आलेख में दे दिया है तो उस पर कुछ लिखने का कोई फायदा है नहीं, आप उस आलेख का पढ़ना चाहते हैं तो इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।
https://www.facebook.com/groups/GhumakkariDilSe/permalink/2180470392014423/
अब मैं GDS की वर्दी की अपनी कहानी आपसे शेयर करता हूं। अप्रैल 2017 में GDS फेसबुक पर जुड़ा और उसके दस दिन बाद ही मैं जबरदस्ती व्हासट्सएप्प में भी घुस गया। तब हमने देखा कि कुछ लोग टीशर्ट और टोपी पहने हुए फोटो लगा रखे हैं। हमने रितेश गुप्ता से कहा कि मुझे भी ऐसी टीशर्ट और टोपी चाहिए, तो उन्होंने मुझे संजय कौशिक जी से संपर्क करने के लिए कहा। रितेश गुप्ता ने मुझे जोड़ा था इसलिए उनसे तो बातचीत हुई थी लेकिन ये संजय कौशिक कौन हैं मुझे नहीं पता था। खैर फेसबुक पर खोजा तो कौशिक जी भी मिल गए। हमने उनसे कहा कि मुझे टीशर्ट और टोपी चाहिए तो उन्होंने मेरी अगली यात्रा के बारे में पूछा तो हमने कहा कि 15 दिन बात मुझे तिरुपति, रामेश्वरम, कन्याकुमारी और त्रिवेंद्रम जाना है उससे पहले दे दीजिएगा, लेकिन हमारे 15 दिन को उन्होंने 15 जून समझ लिया और हो गई गड़बड़।
हम 7 जून को तिरुपति के लिए प्रस्थान कर गए तब उनको याद आया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और हम अपनी यात्रा पर चले गए। वापसी में मुंबई में प्रतीक गांधी और बुआ जी (दर्शन कौर धनोय) मुझसे स्टेशन पर मिलने आए तो हमने पहली बार GDS का बैनर देखा तो हमने टीशर्ट-टोपी के साथ बैनर भी मांग लिए तो रितेश गुप्ता ने मुझे बैनर का कोरल फाइल भेज दिया जिसे हमने पिं्रट करवा लिया और लेकर चंद्रशिला चोटी पर पहुंच गए और अपने साथ पांच और लोगों को लेकर गए। उसके बाद एक दिन कौशिक जी ने फोन किया कि आपको टीशर्ट-टोपी देने में देर हो गई तो टीशर्ट तो नहीं है टोपी पहुंचवा देते हैं।
उसके लिए मुझे अनिल दीक्षित से सपंर्क करना था और उनसे बात हुई तो मिलने के स्थान का चयन हुआ और उसके बाद हमने अपने दुपहिया से उनके चौपहिया का पीछा करके सड़क पर दौड़ते-भागते आधा दर्जन टोपी, कलम और बैज अपने कब्जे में लिया और उसके बाद उज्जैन, ओंकारेश्वर की यात्रा पर निकल गया। उसके बाद समय आया रांसी में GDS मिलन का। एक दिन अचानक ही किशन बाहेती जी का फोन आता है कि आप अपने टीशर्ट का साइज बताइए। अब टीशर्ट के साइज से एक बात समझ नहीं आया कि हम कौन सा साइज बताएं क्योंकि हमने तो आज तक टीशर्ट पहने ही नहीं था तो साइज का क्या पता फिर अपने ही कद-काठी वाले आदमी से उसके टीशर्ट का साइज पूछा और बता दिया और मेरे लिए भी GDS का वर्दी बन गया और साथ में टोपी भी मिल गया। हमने अब तक कभी टीशर्ट पहना नहीं था और पहना भी तो एक वर्दी के रूप में जिसमें मेरी एक फोटो बहुत अच्छी आई है उस फोटो के लिए अनुराग चतुर्वेदी और देवेंद्र कोठारी जी को बहुत बहुत धन्यवाद।
उसके बाद तो हम अब कहीं भी जाते हैं उस वर्दी को साथ जरूर ले जाते हैं और यदा-कदा अनजान लोगों को भी टोपी पहना आते हैं। सबसे अंत का वाकया याद आता है तो अपने मध्यमहेश्वर यात्रा की याद आती है। जब मैं और बीरेंद्र भैया सुबह सुबह कांपते हुए मध्यमहेश्वर से बूढ़ामध्यमहेश्वर पहुंचे तो हमारे साथ ही चार और लोग वहां पहुंचे। हमने जैसे ही बैनर निकाला तो उन्होंने उस बैनर का परिचय पूछा। सब कुछ बताने के बाद उन्होंने उस बैनर के साथ शौक से फोटो खिंचवाया और टोपी टीशर्ट देखते ही उस पर भी भूखे शेर की तरह टूट पड़े। अब टोपी एक और वो पांच तो काम कैसे बने तो हुआ ये कि बैनर के साथ पांचों एक साथ खड़े होंगे और बारी बारी से टोपी लगाकर फोटो खिंचवाएंगे। उनको ऐसे करते इतनी खुशी हुई थी कि पूछिए मत।
ऐसे ही एक वाकया याद आता है कि एक दिन बेटे ने कहा कि पापाजी मेरे एक दोस्त बता रहा था कि उसके पिताजी एक दिन फेसबुक चला रहे थे तो और वो पास ही में बैठा हुआ था तो तुम्हारे पापा का एक फोटो दिख गया जिसमें वो एक GDS लिखा हुआ टोपी और टीशर्ट पहने हुए हैं तो ये GDS क्या है तो मैंने सब कुछ बता दिया कि GDS क्या है। अब तो कहीं घूमने जाता हूं तो टोपी-टीशर्ट और बैनर देखकर लोग इतने उत्सुकता से पूछते हैं कि कुछ कहिए मत। वो जितनी उत्सुकता से पूछते हैं उससे ज्यादा आनंद लेकर हम GDS का परिचय उनको देते हैं। सब कुछ जानकर वो भी बहुत खुश होते हैं। अब आज के पोस्ट में इतना ही, क्योंकि अगर GDS के वर्दी-बैनर पर लिखने लगा तो कई पन्नों की रिपोर्ट तैयार हो जाएगी।
अरे हां एक बात तो हम भूल ही गए, जब हम मध्यमहेश्वर मंदिर पर बैनर के साथ फोटो खिंचवा रहे थे तो वहां के एक कर्मचारी ने अचानक ही पूछ दिया कि इस बैनर के साथ पिछले साल भी कुछ लोग फोटो खिंचवा रहे थे तब हमने कुछ नहीं सोचा था लेकिन आज आपको फिर वैसे ही बैनर के साथ देखकर मन में उत्सुकता हुई और पूछ लिया। अगर कोई दिक्कत न हो तो मुझे बता सकते हैं क्या कि ये क्या है? फिर हमने उनको बैनर की पूरी कथा सुनाई तो वो भी कहने लगे कि ये तो बहुत अच्छा है कि बिना जान-पहचान के भी लोग एक दूसरे से जुड़ रहे हैं और सबका एक ही धर्म है और वो है घुमक्कड़ी।
सभी फोटो : बूढ़ा मध्यमहेश्वर, 30 सितम्बर 2018
#gds_jaihind
#26_january
#वर्दीधारी
वर्दी क्या है, वर्दी की महत्ता क्या है, वर्दी कौन पहनता है, आदि न जाने कितने ही सवाल वर्दी पर किए जा सकते हैं और उन सभी सवालों का जवाब किशन बाहेती जी ने अपने आलेख में दे दिया है तो उस पर कुछ लिखने का कोई फायदा है नहीं, आप उस आलेख का पढ़ना चाहते हैं तो इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।
https://www.facebook.com/groups/GhumakkariDilSe/permalink/2180470392014423/
अब मैं GDS की वर्दी की अपनी कहानी आपसे शेयर करता हूं। अप्रैल 2017 में GDS फेसबुक पर जुड़ा और उसके दस दिन बाद ही मैं जबरदस्ती व्हासट्सएप्प में भी घुस गया। तब हमने देखा कि कुछ लोग टीशर्ट और टोपी पहने हुए फोटो लगा रखे हैं। हमने रितेश गुप्ता से कहा कि मुझे भी ऐसी टीशर्ट और टोपी चाहिए, तो उन्होंने मुझे संजय कौशिक जी से संपर्क करने के लिए कहा। रितेश गुप्ता ने मुझे जोड़ा था इसलिए उनसे तो बातचीत हुई थी लेकिन ये संजय कौशिक कौन हैं मुझे नहीं पता था। खैर फेसबुक पर खोजा तो कौशिक जी भी मिल गए। हमने उनसे कहा कि मुझे टीशर्ट और टोपी चाहिए तो उन्होंने मेरी अगली यात्रा के बारे में पूछा तो हमने कहा कि 15 दिन बात मुझे तिरुपति, रामेश्वरम, कन्याकुमारी और त्रिवेंद्रम जाना है उससे पहले दे दीजिएगा, लेकिन हमारे 15 दिन को उन्होंने 15 जून समझ लिया और हो गई गड़बड़।
हम 7 जून को तिरुपति के लिए प्रस्थान कर गए तब उनको याद आया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और हम अपनी यात्रा पर चले गए। वापसी में मुंबई में प्रतीक गांधी और बुआ जी (दर्शन कौर धनोय) मुझसे स्टेशन पर मिलने आए तो हमने पहली बार GDS का बैनर देखा तो हमने टीशर्ट-टोपी के साथ बैनर भी मांग लिए तो रितेश गुप्ता ने मुझे बैनर का कोरल फाइल भेज दिया जिसे हमने पिं्रट करवा लिया और लेकर चंद्रशिला चोटी पर पहुंच गए और अपने साथ पांच और लोगों को लेकर गए। उसके बाद एक दिन कौशिक जी ने फोन किया कि आपको टीशर्ट-टोपी देने में देर हो गई तो टीशर्ट तो नहीं है टोपी पहुंचवा देते हैं।
उसके लिए मुझे अनिल दीक्षित से सपंर्क करना था और उनसे बात हुई तो मिलने के स्थान का चयन हुआ और उसके बाद हमने अपने दुपहिया से उनके चौपहिया का पीछा करके सड़क पर दौड़ते-भागते आधा दर्जन टोपी, कलम और बैज अपने कब्जे में लिया और उसके बाद उज्जैन, ओंकारेश्वर की यात्रा पर निकल गया। उसके बाद समय आया रांसी में GDS मिलन का। एक दिन अचानक ही किशन बाहेती जी का फोन आता है कि आप अपने टीशर्ट का साइज बताइए। अब टीशर्ट के साइज से एक बात समझ नहीं आया कि हम कौन सा साइज बताएं क्योंकि हमने तो आज तक टीशर्ट पहने ही नहीं था तो साइज का क्या पता फिर अपने ही कद-काठी वाले आदमी से उसके टीशर्ट का साइज पूछा और बता दिया और मेरे लिए भी GDS का वर्दी बन गया और साथ में टोपी भी मिल गया। हमने अब तक कभी टीशर्ट पहना नहीं था और पहना भी तो एक वर्दी के रूप में जिसमें मेरी एक फोटो बहुत अच्छी आई है उस फोटो के लिए अनुराग चतुर्वेदी और देवेंद्र कोठारी जी को बहुत बहुत धन्यवाद।
उसके बाद तो हम अब कहीं भी जाते हैं उस वर्दी को साथ जरूर ले जाते हैं और यदा-कदा अनजान लोगों को भी टोपी पहना आते हैं। सबसे अंत का वाकया याद आता है तो अपने मध्यमहेश्वर यात्रा की याद आती है। जब मैं और बीरेंद्र भैया सुबह सुबह कांपते हुए मध्यमहेश्वर से बूढ़ामध्यमहेश्वर पहुंचे तो हमारे साथ ही चार और लोग वहां पहुंचे। हमने जैसे ही बैनर निकाला तो उन्होंने उस बैनर का परिचय पूछा। सब कुछ बताने के बाद उन्होंने उस बैनर के साथ शौक से फोटो खिंचवाया और टोपी टीशर्ट देखते ही उस पर भी भूखे शेर की तरह टूट पड़े। अब टोपी एक और वो पांच तो काम कैसे बने तो हुआ ये कि बैनर के साथ पांचों एक साथ खड़े होंगे और बारी बारी से टोपी लगाकर फोटो खिंचवाएंगे। उनको ऐसे करते इतनी खुशी हुई थी कि पूछिए मत।
ऐसे ही एक वाकया याद आता है कि एक दिन बेटे ने कहा कि पापाजी मेरे एक दोस्त बता रहा था कि उसके पिताजी एक दिन फेसबुक चला रहे थे तो और वो पास ही में बैठा हुआ था तो तुम्हारे पापा का एक फोटो दिख गया जिसमें वो एक GDS लिखा हुआ टोपी और टीशर्ट पहने हुए हैं तो ये GDS क्या है तो मैंने सब कुछ बता दिया कि GDS क्या है। अब तो कहीं घूमने जाता हूं तो टोपी-टीशर्ट और बैनर देखकर लोग इतने उत्सुकता से पूछते हैं कि कुछ कहिए मत। वो जितनी उत्सुकता से पूछते हैं उससे ज्यादा आनंद लेकर हम GDS का परिचय उनको देते हैं। सब कुछ जानकर वो भी बहुत खुश होते हैं। अब आज के पोस्ट में इतना ही, क्योंकि अगर GDS के वर्दी-बैनर पर लिखने लगा तो कई पन्नों की रिपोर्ट तैयार हो जाएगी।
अरे हां एक बात तो हम भूल ही गए, जब हम मध्यमहेश्वर मंदिर पर बैनर के साथ फोटो खिंचवा रहे थे तो वहां के एक कर्मचारी ने अचानक ही पूछ दिया कि इस बैनर के साथ पिछले साल भी कुछ लोग फोटो खिंचवा रहे थे तब हमने कुछ नहीं सोचा था लेकिन आज आपको फिर वैसे ही बैनर के साथ देखकर मन में उत्सुकता हुई और पूछ लिया। अगर कोई दिक्कत न हो तो मुझे बता सकते हैं क्या कि ये क्या है? फिर हमने उनको बैनर की पूरी कथा सुनाई तो वो भी कहने लगे कि ये तो बहुत अच्छा है कि बिना जान-पहचान के भी लोग एक दूसरे से जुड़ रहे हैं और सबका एक ही धर्म है और वो है घुमक्कड़ी।
सभी फोटो : बूढ़ा मध्यमहेश्वर, 30 सितम्बर 2018
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