Monday, 12 July 2021

समास (Compound)

समास (Compound)

 

दो या अधिक शब्दों (पदों) का परस्पर संबद्ध बतानेवाले शब्दों अथवा प्रत्ययों का लोप होने पर उन दो या अधिक शब्दों से जो एक स्वतन्त शब्द बनता है, उस शब्द को सामासिक शब्द कहते है और उन दो या अधिक शब्दों का जो संयोग होता है, वह समास कहलाता है।
दूसरे अर्थ में- कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक अर्थ प्रकट करना 'समास' कहलाता है।
समास में कम-से-कम दो पदों का योग होता है।
वे दो या अधिक पद एक पद हो जाते है: 'एकपदीभावः समासः'।
समास में समस्त होनेवाले पदों का विभक्ति-प्रत्यय लुप्त हो जाता है।
समस्त पदों के बीच सन्धि की स्थिति होने पर सन्धि अवश्य होती है। यह नियम संस्कृत तत्सम में अत्यावश्यक है।

समास के भेद

समास के मुख्य सात भेद है:-
(1) तत्पुरुष समास ( Determinative Compound)
(2) कर्मधारय समास (Appositional Compound)
(3) द्विगु समास (Numeral Compound)
(4) बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)
(5) द्वन्द समास (Copulative Compound)
(6) अव्ययीभाव समास(Adverbial Compound)
(7) नञ समास

पदों की प्रधनता के आधार पर वर्गीकरण
पूर्वपद प्रधान- अव्ययीभाव
उत्तरपद प्रधान- तत्पुरुष, कर्मधारय व द्विगु
दोनों पद प्रधान- द्वन्द
दोनों पद अप्रधान- बहुव्रीहि (इसमें कोई तीसरा अर्थ प्रधान होता है )
(1)तत्पुरुष समास :- जिस समास में बाद का अथवा उत्तरपद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच का कारक-चिह्न लुप्त हो जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते है।
जैसे-
तुलसीकृत= तुलसी से कृत
शराहत= शर से आहत
राहखर्च= राह के लिए खर्च
राजा का कुमार= राजकुमार
तत्पुरुष समास में अन्तिम पद प्रधान होता है। इस समास में साधारणतः प्रथम पद विशेषण और द्वितीय पद विशेष्य होता है। द्वितीय पद, अर्थात बादवाले पद के विशेष्य होने के कारण इस समास में उसकी प्रधानता रहती है।
तत्पुरुष समास के भेद
तत्पुरुष समास के छह भेद होते है-
(i)कर्म तत्पुरुष
(ii) करण तत्पुरुष
(iii)सम्प्रदान तत्पुरुष
(iv)अपादान तत्पुरुष
(v)सम्बन्ध तत्पुरुष
(vi)अधिकरण तत्पुरुष
(i)कर्म तत्पुरुष (द्वितीया तत्पुरुष)-इसमें कर्म कारक की विभक्ति 'को' का लोप हो जाता है। जैसे-
समस्त-पदविग्रह
स्वर्गप्राप्तस्वर्ग (को) प्राप्त
कष्टापत्रकष्ट (को) आपत्र (प्राप्त)
आशातीतआशा (को) अतीत
गृहागतगृह (को) आगत
सिरतोड़सिर (को) तोड़नेवाला
चिड़ीमारचिड़ियों (को) मारनेवाला
सिरतोड़सिर (को) तोड़नेवाला
गगनचुंबीगगन को चूमने वाला
यशप्राप्तयश को प्राप्त
ग्रामगतग्राम को गया हुआ
रथचालकरथ को चलाने वाला
जेबकतराजेब को कतरने वाला
(ii) करण तत्पुरुष (तृतीया तत्पुरुष)-इसमें करण कारक की विभक्ति 'से', 'के द्वारा' का लोप हो जाता है। जैसे-
समस्त-पदविग्रह
वाग्युद्धवाक् (से) युद्ध
आचारकुशलआचार (से) कुशल
तुलसीकृततुलसी (से) कृत
कपड़छनाकपड़े (से) छना हुआ
मुँहमाँगामुँह (से) माँगा
रसभरारस (से) भरा
करुणागतकरुणा से पूर्ण
भयाकुलभय से आकुल
रेखांकितरेखा से अंकित
शोकग्रस्तशोक से ग्रस्त
मदांधमद से अंधा
मनचाहामन से चाहा
सूररचितसूर द्वारा रचित
(iii)सम्प्रदान तत्पुरुष (चतुर्थी तत्पुरुष)-इसमें संप्रदान कारक की विभक्ति 'के लिए' लुप्त हो जाती है। जैसे-
समस्त-पदविग्रह
देशभक्तिदेश (के लिए) भक्ति
विद्यालयविद्या (के लिए) आलय
रसोईघररसोई (के लिए) घर
हथकड़ीहाथ (के लिए) कड़ी
राहखर्चराह (के लिए) खर्च
पुत्रशोकपुत्र (के लिए) शोक
स्नानघरस्नान के लिए घर
यज्ञशालायज्ञ के लिए शाला
डाकगाड़ीडाक के लिए गाड़ी
गौशालागौ के लिए शाला
सभाभवनसभा के लिए भवन
लोकहितकारीलोक के लिए हितकारी
देवालयदेव के लिए आलय
(iv)अपादान तत्पुरुष (पंचमी तत्पुरुष)- इसमे अपादान कारक की विभक्ति 'से' (अलग होने का भाव) लुप्त हो जाती है। जैसे-
समस्त-पदविग्रह
दूरागतदूर से आगत
जन्मान्धजन्म से अन्ध
रणविमुखरण से विमुख
देशनिकालादेश से निकाला
कामचोरकाम से जी चुरानेवाला
नेत्रहीननेत्र (से) हीन
धनहीनधन (से) हीन
पापमुक्तपाप से मुक्त
जलहीनजल से हीन
(v)सम्बन्ध तत्पुरुष (षष्ठी तत्पुरुष)-इसमें संबंधकारक की विभक्ति 'का', 'के', 'की' लुप्त हो जाती है। जैसे-
समस्त-पदविग्रह
विद्याभ्यासविद्या का अभ्यास
सेनापतिसेना का पति
पराधीनपर के अधीन
राजदरबारराजा का दरबार
श्रमदानश्रम (का) दान
राजभवनराजा (का) भवन
राजपुत्रराजा (का) पुत्र
देशरक्षादेश की रक्षा
शिवालयशिव का आलय
गृहस्वामीगृह का स्वामी
(vi)अधिकरण तत्पुरुष (सप्तमी तत्पुरुष)-इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति 'में', 'पर' लुप्त जो जाती है। जैसे-
समस्त-पदविग्रह
विद्याभ्यासविद्या का अभ्यास
गृहप्रवेशगृह में प्रवेश
नरोत्तमनरों (में) उत्तम
पुरुषोत्तमपुरुषों (में) उत्तम
दानवीरदान (में) वीर
शोकमग्नशोक में मग्न
लोकप्रियलोक में प्रिय
कलाश्रेष्ठकला में श्रेष्ठ
आनंदमग्नआनंद में मग्न
(2)कर्मधारय समास:-जिस समस्त-पद का उत्तरपद प्रधान हो तथा पूर्वपद व उत्तरपद में उपमान-उपमेय अथवा विशेषण-विशेष्य संबंध हो, कर्मधारय समास कहलाता है।
दूसरे शब्दों में-कर्ता-तत्पुरुष को ही कर्मधारय कहते हैं।
पहचान: विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में 'है जो', 'के समान' आदि आते है।
जिस तत्पुरुष समास के समस्त होनेवाले पद समानाधिकरण हों, अर्थात विशेष्य-विशेषण-भाव को प्राप्त हों, कर्ताकारक के हों और लिंग-वचन में समान हों, वहाँ 'कर्मधारयतत्पुरुष समास होता है।
समस्त-पदविग्रह
नवयुवकनव है जो युवक
पीतांबरपीत है जो अंबर
परमेश्र्वरपरम है जो ईश्र्वर
नीलकमलनील है जो कमल
महात्मामहान है जो आत्मा
कनकलताकनक की-सी लता
प्राणप्रियप्राणों के समान प्रिय
देहलतादेह रूपी लता
लालमणिलाल है जो मणि
नीलकंठनीला है जो कंठ
महादेवमहान है जो देव
अधमराआधा है जो मरा
परमानंदपरम है जो आनंद
कर्मधारय तत्पुरुष के भेद
कर्मधारय तत्पुरुष के चार भेद है-
(i)विशेषणपूर्वपद 
(ii) विशेष्यपूर्वपद 
(iii) विशेषणोभयपद
(iv)विशेष्योभयपद
(i)विशेषणपूर्वपद :- इसमें पहला पद विशेषण होता है।
जैसे- पीत अम्बर= पीताम्बर
परम ईश्वर= परमेश्वर
नीली गाय= नीलगाय
प्रिय सखा= प्रियसखा
(ii) विशेष्यपूर्वपद :- इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद अधिकतर संस्कृत में मिलते है।
जैसे- कुमारी (क्वाँरी लड़की)
श्रमणा (संन्यास ग्रहण की हुई )=कुमारश्रमणा।
(iii) विशेषणोभयपद :-इसमें दोनों पद विशेषण होते है।
जैसे- नील-पीत (नीला-पी-ला ); शीतोष्ण (ठण्डा-गरम ); लालपिला; भलाबुरा; दोचार कृताकृत (किया-बेकिया, अर्थात अधूरा छोड़ दिया गया); सुनी-अनसुनी; कहनी-अनकहनी।
(iv)विशेष्योभयपद:- इसमें दोनों पद विशेष्य होते है।
जैसे- आमगाछ या आम्रवृक्ष, वायस-दम्पति।
कर्मधारयतत्पुरुष समास के उपभेद
कर्मधारयतत्पुरुष समास के अन्य उपभेद हैं- (i) उपमानकर्मधारय (ii) उपमितकर्मधारय (iii) रूपककर्मधारय
जिससे किसी की उपमा दी जाये, उसे 'उपमान' और जिसकी उपमा दी जाये, उसे 'उपमेय' कहा जाता है। घन की तरह श्याम =घनश्याम- यहाँ 'घन' उपमान है और 'श्याम' उपमेय।
(i) उपमानकर्मधारय- इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता हैं। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से 'इव' या 'जैसा' अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों ही पद, चूँकि एक ही कर्ताविभक्ति, वचन और लिंग के होते है, इसलिए समस्त पद कर्मधारय-लक्षण का होता है। अन्य उदाहरण- विद्युत्-जैसी चंचला =विद्युच्चंचला।
(ii) उपमितकर्मधारय- यह उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है, अर्थात इसमें उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा। जैसे- अधरपल्लव के समान = अधर-पल्लव; नर सिंह के समान =नरसिंह।
किन्तु, जहाँ उपमितकर्मधारय- जैसा 'नर सिंह के समान' या 'अधर पल्लव के समान' विग्रह न कर अगर 'नर ही सिंह या 'अधर ही पल्लव'- जैसा विग्रह किया जाये, अर्थात उपमान-उपमेय की तुलना न कर उपमेय को ही उपमान कर दिया जाय-
दूसरे शब्दों में, जहाँ एक का दूसरे पर आरोप कर दिया जाये, वहाँ रूपककर्मधारय होगा। उपमितकर्मधारय और रूपककर्मधारय में विग्रह का यही अन्तर है। रूपककर्मधारय के अन्य उदाहरण- मुख ही है चन्द्र = मुखचन्द्र; विद्या ही है रत्न = विद्यारत्न भाष्य (व्याख्या) ही है अब्धि (समुद्र)= भाष्याब्धि।
(3)द्विगु समास:-जिस समस्त-पद का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो, वह द्विगु कर्मधारय समास कहलाता है।
जैसे-
समस्त-पदविग्रह
सप्तसिंधुसात सिंधुओं का समूह
दोपहरदो पहरों का समूह
त्रिलोकतीनों लोको का समाहार
तिरंगातीन रंगों का समूह
दुअत्रीदो आनों का समाहार
द्विगु के भेद
इसके दो भेद होते है- (i)समाहारद्विगु और (ii)उत्तरपदप्रधानद्विगु।
(i)समाहारद्विगु :- समाहार का अर्थ है 'समुदाय' 'इकट्ठा होना' 'समेटना'।
जैसे- तीनों लोकों का समाहार= त्रिलोक
पाँचों वटों का समाहार= पंचवटी
पाँच सेरों का समाहार= पसेरी
तीनो भुवनों का समाहार= त्रिभुवन
(ii)उत्तरपदप्रधानद्विगु:-उत्तरपदप्रधान द्विगु के दो प्रकार है-(a) बेटा या उत्पत्र के अर्थ में; जैसे -दो माँ का- द्वैमातुर या दुमाता; दो सूतों के मेल का- दुसूती; (b) जहाँ सचमुच ही उत्तरपद पर जोर हो; जैसे- पाँच प्रमाण (नाम) =पंचप्रमाण; पाँच हत्थड़ (हैण्डिल)= पँचहत्थड़।
द्रष्टव्य- अनेक बहुव्रीहि समासों में भी पूर्वपद संख्यावाचक होता है। ऐसी हालत में विग्रह से ही जाना जा सकता है कि समास बहुव्रीहि है या द्विगु। यदि 'पाँच हत्थड़ है जिसमें वह =पँचहत्थड़' विग्रह करें, तो यह बहुव्रीहि है और 'पाँच हत्थड़' विग्रह करें, तो द्विगु।
तत्पुरुष समास के इन सभी प्रकारों में ये विशेषताएँ पायी जाती हैं-
(i) यह समास दो पदों के बीच होता है।
(ii) इसके समस्त पद का लिंग उत्तरपद के अनुसार हैं।
(iii) इस समास में उत्तरपद का ही अर्थ प्रधान होता हैं।

(4)बहुव्रीहि समास:- समास में आये पदों को छोड़कर जब किसी अन्य पदार्थ की प्रधानता हो, तब उसे बहुव्रीहि समास कहते है।
जैसे- दशानन- दस मुहवाला- रावण।
जिस समस्त-पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद मिल कर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते है, उसमें बहुव्रीहि समास होता है। 'नीलकंठ', नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव। यहाँ पर दोनों पदों ने मिल कर एक तीसरे पद 'शिव' का संकेत किया, इसलिए यह बहुव्रीहि समास है।
इस समास के समासगत पदों में कोई भी प्रधान नहीं होता, बल्कि पूरा समस्तपद ही किसी अन्य पद का विशेषण होता है।
समस्त-पदविग्रह
प्रधानमंत्रीमंत्रियो में प्रधान है जो (प्रधानमंत्री)
पंकज(पंक में पैदा हो जो (कमल)
अनहोनीन होने वाली घटना (कोई विशेष घटना)
निशाचरनिशा में विचरण करने वाला (राक्षस)
चौलड़ीचार है लड़ियाँ जिसमे (माला)
विषधर(विष को धारण करने वाला (सर्प)
तत्पुरुष और बहुव्रीहि में अन्तर- तत्पुरुष और बहुव्रीहि में यह भेद है कि तत्पुरुष में प्रथम पद द्वितीय पद का विशेषण होता है, जबकि बहुव्रीहि में प्रथम और द्वितीय दोनों पद मिलकर अपने से अलग किसी तीसरे के विशेषण होते है।
जैसे- 'पीत अम्बर =पीताम्बर (पीला कपड़ा )' कर्मधारय तत्पुरुष है तो 'पीत है अम्बर जिसका वह- पीताम्बर (विष्णु)' बहुव्रीहि। इस प्रकार, यह विग्रह के अन्तर से ही समझा जा सकता है कि कौन तत्पुरुष है और कौन बहुव्रीहि। विग्रह के अन्तर होने से समास का और उसके साथ ही अर्थ का भी अन्तर हो जाता है। 'पीताम्बर' का तत्पुरुष में विग्रह करने पर 'पीला कपड़ा' और बहुव्रीहि में विग्रह करने पर 'विष्णु' अर्थ होता है।
बहुव्रीहि समास के भेद
बहुव्रीहि समास के चार भेद है-
(i) समानाधिकरणबहुव्रीहि 
(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहि 
(iii) तुल्ययोगबहुव्रीहि 
(iv)व्यतिहारबहुव्रीहि
(i) समानाधिकरणबहुव्रीहि :- इसमें सभी पद प्रथमा, अर्थात कर्ताकारक की विभक्ति के होते है; किन्तु समस्तपद द्वारा जो अन्य उक्त होता है, वह कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्ति-रूपों में भी उक्त हो सकता है।
जैसे- प्राप्त है उदक जिसको =प्राप्तोदक (कर्म में उक्त);
जीती गयी इन्द्रियाँ है जिसके द्वारा =जितेन्द्रिय (करण में उक्त);
दत्त है भोजन जिसके लिए =दत्तभोजन (सम्प्रदान में उक्त);
निर्गत है धन जिससे =निर्धन (अपादान में उक्त);
पीत है अम्बर जिसका =पीताम्बर;
मीठी है बोली जिसकी =मिठबोला;
नेक है नाम जिसका =नेकनाम (सम्बन्ध में उक्त);
चार है लड़ियाँ जिसमें =चौलड़ी;
सात है खण्ड जिसमें =सतखण्डा (अधिकरण में उक्त)।
(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहि :-समानाधिकरण में जहाँ दोनों पद प्रथमा या कर्ताकारक की विभक्ति के होते है, वहाँ पहला पद तो प्रथमा विभक्ति या कर्ताकारक की विभक्ति के रूप का ही होता है, जबकि बादवाला पद सम्बन्ध या अधिकरण कारक का हुआ करता है। जैसे- शूल है पाणि (हाथ) में जिसके =शूलपाणि;
वीणा है पाणि में जिसके =वीणापाणि।
(iii) तुल्ययोगबहुव्रीहिु:--जिसमें पहला पद 'सह' हो, वह तुल्ययोगबहुव्रीहि या सहबहुव्रीहि कहलाता है।
'सह' का अर्थ है 'साथ' और समास होने पर 'सह' की जगह केवल 'स' रह जाता है। इस समास में यह ध्यान देने की बात है कि विग्रह करते समय जो 'सह' (साथ) बादवाला या दूसरा शब्द प्रतीत होता है, वह समास में पहला हो जाता है।
जैसे- जो बल के साथ है, वह=सबल; जो देह के साथ है, वह सदेह; जो परिवार के साथ है, वह सपरिवार; जो चेत (होश) के साथ है, वह =सचेत।
(iv)व्यतिहारबहुव्रीहि:-जिससे घात-प्रतिघात सूचित हो, उसे व्यतिहारबहुव्रीहि कहा जाता है।
इ समास के विग्रह से यह प्रतीत होता है कि 'इस चीज से और इस या उस चीज से जो लड़ाई हुई'।
जैसे- मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई =मुक्का-मुक्की; घूँसे-घूँसे से जो लड़ाई हुई =घूँसाघूँसी; बातों-बातों से जो लड़ाई हुई =बाताबाती। इसी प्रकार, खींचातानी, कहासुनी, मारामारी, डण्डाडण्डी, लाठालाठी आदि।
इन चार प्रमुख जातियों के बहुव्रीहि समास के अतिरिक्त इस समास का एक प्रकार और है। जैसे-
प्रादिबहुव्रीहि- जिस बहुव्रीहि का पूर्वपद उपसर्ग हो, वह प्रादिबहुव्रीहि कहलाता है। जैसे- कुत्सित है रूप जिसका = कुरूप; नहीं है रहम जिसमें = बेरहम; नहीं है जन जहाँ = निर्जन।
तत्पुरुष के भेदों में भी 'प्रादि' एक भेद है, किन्तु उसके दोनों पदों का विग्रह विशेषण-विशेष्य-पदों की तरह होगा, न कि बहुव्रीहि के ढंग पर, अन्य पद की प्रधानता की तरह। जैसे- अति वृष्टि= अतिवृष्टि (प्रादितत्पुरुष) ।
द्रष्टव्य- (i) बहुव्रीहि के समस्त पद में दूसरा पद 'धर्म' या 'धनु' हो, तो वह आकारान्त हो जाता है; जैसे- प्रिय है धर्म जिसका = प्रियधर्मा; सुन्दर है धर्म जिसका = सुधर्मा; आलोक ही है धनु जिसका = आलोकधन्वा।
(ii) सकारान्त में विकल्प से 'आ' और 'क' किन्तु ईकारान्त, उकारान्त और ऋकारान्त समासान्त पदों के अन्त में निश्र्चितरूप से 'क' लग जाता है। जैसे- उदार है मन जिसका = उदारमनस, उदारमना या उदारमनस्क; अन्य में है मन जिसका = अन्यमना या अन्यमनस्क; ईश्र्वर है कर्ता जिसका = ईश्र्वरकर्तृक; साथ है पति जिसके; सप्तीक; बिना है पति के जो = विप्तीक।

बहुव्रीहि समास की विशेषताएँ

बहुव्रीहि समास की निम्नलिखित विशेषताएँ है-
(i) यह दो या दो से अधिक पदों का समास होता है।
(ii)इसका विग्रह शब्दात्मक या पदात्मक न होकर वाक्यात्मक होता है।
(iii)इसमें अधिकतर पूर्वपद कर्ता कारक का होता है या विशेषण।
(iv)इस समास से बने पद विशेषण होते है। अतः उनका लिंग विशेष्य के अनुसार होता है।
(v) इसमें अन्य पदार्थ प्रधान होता है।
(5)द्वन्द्व समास :- जिस समस्त-पद के दोनों पद प्रधान हो तथा विग्रह करने पर 'और', 'अथवा', 'या', 'एवं' लगता हो वह द्वन्द्व समास कहलाता है।
पहचान : दोनों पदों के बीच प्रायः योजक चिह्न (Hyphen (-) का प्रयोग होता है।
द्वन्द्व समास में सभी पद प्रधान होते है। द्वन्द्व और तत्पुरुष से बने पदों का लिंग अन्तिम शब्द के अनुसार होता है।
द्वन्द्व समास के भेद
द्वन्द्व समास के तीन भेद है-
(i) इतरेतर द्वन्द्व
(ii) समाहार द्वन्द्व 
(iii) वैकल्पिक द्वन्द्व
(i) इतरेतर द्वन्द्व-: वह द्वन्द्व, जिसमें 'और' से सभी पद जुड़े हुए हो और पृथक् अस्तित्व रखते हों, 'इतरेतर द्वन्द्व' कहलता है।
इस समास से बने पद हमेशा बहुवचन में प्रयुक्त होते है; क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों के मेल से बने होते है।
जैसे- राम और कृष्ण =राम-कृष्ण, ऋषि और मुनि =ऋषि-मुनि, गाय और बैल =गाय-बैल, भाई और बहन =भाई-बहन, माँ और बाप =माँ-बाप, बेटा और बेटी =बेटा-बेटी इत्यादि।
यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि इतरेतर द्वन्द्व में दोनों पद न केवल प्रधान होते है, बल्कि अपना अलग-अलग अस्तित्व भी रखते है।
(ii) समाहार द्वन्द्व-समाहार का अर्थ है समष्टि या समूह। जब द्वन्द्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़े होने पर भी पृथक-पृथक अस्तित्व न रखें, बल्कि समूह का बोध करायें, तब वह समाहार द्वन्द्व कहलाता है।
समाहार द्वन्द्व में दोनों पदों के अतिरिक्त अन्य पद भी छिपे रहते है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते है।
जैसे- आहारनिद्रा =आहार और निद्रा (केवल आहार और निद्रा ही नहीं, बल्कि इसी तरह की और बातें भी); दालरोटी=दाल और रोटी (अर्थात भोजन के सभी मुख्य पदार्थ); हाथपाँव =हाथ और पाँव (अर्थात हाथ और पाँव तथा शरीर के दूसरे अंग भी )। इसी तरह नोन-तेल, कुरता-टोपी, साँप-बिच्छू, खाना-पीना इत्यादि।
कभी-कभी विपरीत अर्थवाले या सदा विरोध रखनेवाले पदों का भी योग हो जाता है। जैसे- चढ़ा-ऊपरी, लेन-देन, आगा-पीछा, चूहा-बिल्ली इत्यादि।
जब दो विशेषण-पदों का संज्ञा के अर्थ में समास हो, तो समाहार द्वन्द्व होता है।
जैसे- लंगड़ा-लूला, भूखा-प्यास, अन्धा-बहरा इत्यादि।
उदाहरण- लँगड़े-लूले यह काम नहीं क्र सकते; भूखे-प्यासे को निराश नहीं करना चाहिए; इस गाँव में बहुत-से अन्धे-बहरे है।
द्रष्टव्य- यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि जब दोनों पद विशेषण हों और विशेषण के ही अर्थ में आयें तब वहाँ द्वन्द्व समास नहीं होता, वहाँ कर्मधारय समास हो जाता है। जैसे- लँगड़ा-लूला आदमी यह काम नहीं कर सकता; भूखा-प्यासा लड़का सो गया; इस गाँव में बहुत-से लोग अन्धे-बहरे हैं- इन प्रयोगों में 'लँगड़ा-लूला', 'भूखा-प्यासा' और 'अन्धा-बहरा' द्वन्द्व समास नहीं हैं।
(iii) वैकल्पिक द्वन्द्व:-जिस द्वन्द्व समास में दो पदों के बीच 'या', 'अथवा' आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे हों, उसे वैकल्पिक द्वन्द्व कहते है।
इस समास में बहुधा दो विपरीतार्थक शब्दों का योग रहता है। जैसे- पाप-पुण्य, धर्माधर्म, भला-बुरा, थोड़ा-बहुत इत्यादि। यहाँ 'पाप-पुण्य' का अर्थ 'पाप' और 'पुण्य' भी प्रसंगानुसार हो सकता है।
(6) अव्ययीभाव समास:- अव्ययीभाव का लक्षण है- जिसमे पूर्वपद की प्रधानता हो और सामासिक या समास पद अव्यय हो जाय, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।
सरल शब्दो में- जिस समास का पहला पद (पूर्वपद) अव्यय तथा प्रधान हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।
इस समास में समूचा पद क्रियाविशेषण अव्यय हो जाता है। इसमें पहला पद उपसर्ग आदि जाति का अव्यय होता है और वही प्रधान होता है। जैसे- प्रतिदिन, यथासम्भव, यथाशक्ति, बेकाम, भरसक इत्यादि।
पहचान : पहला पद अनु, आ, प्रति, भर, यथा, यावत, हर आदि होता है।
अव्ययीभाववाले पदों का विग्रह- ऐसे समस्तपदों को तोड़ने में, अर्थात उनका विग्रह करने में हिन्दी में बड़ी कठिनाई होती है, विशेषतः संस्कृत के समस्त पदों का विग्रह करने में हिन्दी में जिन समस्त पदों में द्विरुक्तिमात्र होती है, वहाँ विग्रह करने में केवल दोनों पदों को अलग कर दिया जाता है।
जैसे- (संस्कृत) प्रतिदिन- दिन-दिन
यथाविधि- विधि के अनुसार; यथाक्रम- क्रम के अनुसार; यथाशक्ति- शक्ति के अनुसार; आजन्म- जन्म तक
पूर्वपद-अव्यय+उत्तरपद=समस्त-पदविग्रह
प्रति+दिन=प्रतिदिनप्रत्येक दिन
+जन्म=आजन्मजन्म से लेकर
यथा+संभव=यथासंभवजैसा संभव हो
अनु+रूप=अनुरूपरूप के योग्य
भर+पेट=भरपेटपेट भर के
हाथ+हाथ=हाथों-हाथहाथ ही हाथ में
(7)नत्र समास:- इसमे नहीं का बोध होता है। जैसे - अनपढ़, अनजान , अज्ञान ।

समस्त-पदविग्रह
अनाचारन आचार
अनदेखान देखा हुआ
अन्यायन न्याय
अनभिज्ञन अभिज्ञ
नालायकनहीं लायक
अचलन चल
नास्तिकन आस्तिक
अनुचितन उचित

समास-सम्बन्धी कुछ विशेष बातें-

(1)एक समस्त पद में एक से अधिक प्रकार के समास हो सकते है। यह विग्रह करने पर स्पष्ट होता है। जिस समास के अनुसार विग्रह होगा, वही समास उस पद में माना जायेगा।
जैसे- पीताम्बर- (i) पीत है जो अम्बर (कर्मधारय), (ii)पीत है अम्बर जिसका (बहुव्रीहि); निडर- बिना डर का (अव्ययीभाव ); नहीं है डर जिसे (प्रादि का नञ बहुव्रीहि); सुरूप - सुन्दर है जो रूप (कर्मधारय), सुन्दर है रूप जिसका (बहुव्रीहि); चन्द्रमुख- चन्द्र के समान मुख (कर्मधारय); बुद्धिबल- बुद्धि ही है बल (कर्मधारय);
(2) समासों का विग्रह करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि यथासम्भव समास में आये पदों के अनुसार ही विग्रह हो।
जैसे- पीताम्बर का विग्रह- 'पीत है जो अम्बर' अथवा 'पीत है अम्बर जिसका' ऐसा होना चाहिए। बहुधा संस्कृत के समासों, विशेषकर अव्ययीभाव, बहुव्रीहि और उपपद समासों का विग्रह हिन्दी के अनुसार करने में कठिनाई होती है। ऐसे स्थानों पर हिन्दी के शब्दों से सहायता ली जा सकती है। जैसे- कुम्भकार =कुम्भ को बनानेवाला; खग=आकाश में जानेवाला; आमरण =मरण तक; व्यर्थ =बिना अर्थ का; विमल=मल से रहित; इत्यादि।
(3)अव्ययीभाव समास में दो ही पद होते है। बहुव्रीहि में भी साधारणतः दो ही पद रहते है। तत्पुरुष में दो से अधिक पद हो सकते है और द्वन्द्व में तो सभी समासों से अधिक पद रह सकते है।
जैसे- नोन-तेल-लकड़ी, आम-जामुन-कटहल-कचनार इत्यादि (द्वन्द्व)।
(4)यदि एक समस्त पद में अनेक समासवाले पदों का मेल हो तो अलग-अलग या एक साथ भी विग्रह किया जा सकता है।
जैसे- चक्रपाणिदर्शनार्थ-चक्र है पाणि में जिसके= चक्रपाणि (बहुव्रीहि); दर्शन के अर्थ =दर्शनार्थ (अव्ययीभाव ); चक्रपाणि के दर्शनार्थ =चक्रपाणिदर्शनार्थ (अव्ययीभाव ) । समूचा पद क्रियाविशेषण अव्यय है, इसलिए अव्ययीभाव है।

प्रयोग की दृष्टि से समास के भेद-

प्रयोग की दृष्टि से समास के तीन भेद किये जा सकते है-
(1)संयोगमूलक समास
(2)आश्रयमूलक समास 
(3)वर्णनमूलक समास
(1)संज्ञा-समास :- संयोगमूलक समास को संज्ञा-समास कहते है। इस प्रकार के समास में दोनों पद संज्ञा होते है।
दूसरे शब्दों में, इसमें दो संज्ञाओं का संयोग होता है।
जैसे- माँ-बाप, भाई-बहन, माँ-बेटी, सास-पतोहू, दिन-रात, रोटी-बेटी, माता-पिता, दही-बड़ा, दूध-दही, थाना-पुलिस, सूर्य-चन्द्र इत्यादि।
(2)विशेषण-समास:- यह आश्रयमूलक समास है। यह प्रायः कर्मधारय समास होता है। इस समास में प्रथम पद विशेषण होता है, किन्तु द्वितीय पद का अर्थ बलवान होता है। कर्मधारय का अर्थ है कर्म अथवा वृत्ति धारण करनेवाला। यह विशेषण-विशेष्य, विशेष्य-विशेषण, विशेषण तथा विशेष्य पदों द्वारा सम्पत्र होता है। जैसे-
(क) जहाँ पूर्वपद विशेषण हो; यथा- कच्चाकेला, शीशमहल, महरानी।
(ख)जहाँ उत्तरपद विशेषण हो; यथा- घनश्याम।
(ग़)जहाँ दोनों पद विशेषण हों; यथा- लाल-पीला, खट्टा-मीठा।
(घ) जहाँ दोनों पद विशेष्य हों; यथा- मौलवीसाहब, राजाबहादुर।
(3)अव्यय समास :- वर्णमूलक समास के अन्तर्गत बहुव्रीहि और अव्ययीभाव समास का निर्माण होता है। इस समास (अव्ययीभाव) में प्रथम पद साधारणतः अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा। जैसे- यथाशक्ति, यथासाध्य, प्रतिमास, यथासम्भव, घड़ी-घड़ी, प्रत्येक, भरपेट, यथाशीघ्र इत्यादि।
सन्धि और समास में अन्तर
सन्धि और समास का अन्तर इस प्रकार है-
(i) समास में दो पदों का योग होता है; किन्तु सन्धि में दो वर्णो का।
(ii) समास में पदों के प्रत्यय समाप्त कर दिये जाते है। सन्धि के लिए दो वर्णों के मेल और विकार की गुंजाइश रहती है, जबकि समास को इस मेल या विकार से कोई मतलब नहीं।
(iii) सन्धि के तोड़ने को 'विच्छेद' कहते है, जबकि समास का 'विग्रह' होता है। जैसे- 'पीताम्बर' में दो पद है- 'पीत' और 'अम्बर' । सन्धिविच्छेद होगा- पीत+अम्बर;
जबकि समासविग्रह होगा- पीत है जो अम्बर या पीत है जिसका अम्बर = पीताम्बर। यहाँ ध्यान देने की बात है कि हिंदी में सन्धि केवल तत्सम पदों में होती है, जबकि समास संस्कृत तत्सम, हिन्दी, उर्दू हर प्रकार के पदों में। यही कारण है कि हिंदी पदों के समास में सन्धि आवश्यक नहीं है।
संधि में वर्णो के योग से वर्ण परिवर्तन भी होता है जबकि समास में ऐसा नहीं होता।
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर
इन दोनों समासों में अंतर समझने के लिए इनके विग्रह पर ध्यान देना चाहिए। कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है। जैसे-'नीलगगन' में 'नील' विशेषण है तथा 'गगन' विशेष्य है। इसी तरह 'चरणकमल' में 'चरण' उपमेय है और 'कमल' उपमान है। अतः ये दोनों उदाहरण कर्मधारय समास के है।
बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करता है। जैसे- 'चक्रधर' चक्र को धारण करता है जो अर्थात 'श्रीकृष्ण' ।
नीलकंठ- नीला है जो कंठ- कर्मधारय समास।
नीलकंठ- नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव- बहुव्रीहि समास।
लंबोदर- मोटे पेट वाला- कर्मधारय समास।
लंबोदर- लंबा है उदर जिसका अर्थात गणेश- बहुव्रीहि समास।
द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर
द्विगु समास का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्य होता है जबकि बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है। जैसे-
चतुर्भुज- चार भुजाओं का समूह- द्विगु समास। 
चतुर्भुज- चार है भुजाएँ जिसकी अर्थात विष्णु- बहुव्रीहि समास। 
पंचवटी- पाँच वटों का समाहार- द्विगु समास। 
पंचवटी- पाँच वटों से घिरा एक निश्चित स्थल अर्थात दंडकारण्य में स्थित वह स्थान जहाँ वनवासी राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ निवास किया- बहुव्रीहि समास। 
दशानन- दस आननों का समूह- द्विगु समास। 
दशानन- दस आनन हैं जिसके अर्थात रावण- बहुव्रीहि समास।
द्विगु और कर्मधारय में अंतर
(i) द्विगु का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता है। 
(ii) द्विगु का पहला पद ही विशेषण बन कर प्रयोग में आता है जबकि कर्मधारय में कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता है। जैसे- 
नवरत्न- नौ रत्नों का समूह- द्विगु समास 
चतुर्वर्ण- चार वर्णो का समूह- द्विगु समास 
पुरुषोत्तम- पुरुषों में जो है उत्तम- कर्मधारय समास 
रक्तोत्पल- रक्त है जो उत्पल- कर्मधारय समास

सामासिक पदों की सूची

तत्पुरुष समास (कर्मतत्पुरुष)
पदविग्रहपदविग्रह
गगनचुम्बीगगन (को) चूमनेवालापाकिटमारपाकिट (को) मारनेवाला
चिड़ीमारचिड़ियों (को) मारनेवालागृहागतगृह को आगत
कठखोदवाकाठ (को) खोदनेवालागिरहकटगिरह (को) काटनेवाला
मुँहतोड़मुँह (को) तोड़नेवालास्वर्गप्राप्तस्वर्ग को प्राप्त
अनुभव जन्यअनुभव से जन्यआपबीतीआप पर बीती (सप्तमी तत्पुरुष)
उद्योगपतिउद्योग का पति (मालिक)गुणहीनगुणों से हीन
घुड़दौड़घोड़ों की दौड़जन्मांधजन्म से अंधा
देशाटनदेश में अटन (भ्रमण)दानवीरदान में वीर
देशवासीदेश का वासीअमृतधाराअमृत की धारा
अछूतोद्धारअछूतों का उद्धारआत्मविश्वासआत्मा पर विश्वास
ऋषिकन्याऋषि की कन्याकष्टसाध्यकष्ट से होने वाला
हरघड़ीघड़ी-घड़ी या प्रत्येक घड़ीगुरुदक्षिणागुरु के लिए दक्षिणा
गृहप्रवेशगृह में प्रवेशगोबर गणेशगोबर से बना गणेश
दहीबड़ादही में डूबा हुआ बड़ाअकाल पीड़ितअकाल से पीड़ित
गोशालागौओं के लिए शालागंगाजलगंगा का जल
घुड़सवारघोड़े पर सवारजीवनसाथीजीवन का साथी
जलधाराजल की धारादेशभक्तिदेश की भक्ति
पूँजीपतिपूँजी का पतिभयभीतभय से भीत (डरा)
हस्तलिखितहाथ से लिखितपथभ्रष्टपथ से भ्रष्ट
देशभक्तदेश का भक्तचरित्रचित्रणचरित्र का चित्रण
दानवीरदान देने में वीर (सप्तमी तत्पुरुष)युधिष्ठिरयुद्ध में स्थिर
पर्णशालापर्णनिर्मित शालापुरुषोत्तमपुरुषों में उत्तम
नराधमनरों में अधमनेत्रहीननेत्र से हीन
राहखर्चराह के लिए खर्चशरणागतशरण में आगत
विद्यासागरविद्या का सागरआकशवाणीआकाश से वाणी
आनन्दाश्रमआनन्द का आश्रमआकशवाणीआकाश से वाणी
कर्महीनकर्म से हीन (पंचमी तत्पुरुष)कर्मनिरतकर्म से निरत (सप्तमी तत्पुरुष)
कविश्रेष्ठकवियों से श्रेष्ठकुम्भकारकुम्भ को करने (बनाने)वाला (उपपद तत्पुरुष)
काव्यकारकाव्य की रचना करनेवाला (उपपद तत्पुरुष)कृषिप्रधानकृषि में प्रधान(सप्तमी तत्पुरुष)
क्षत्रियाधमक्षत्रियों में अधम(सप्तमी तत्पुरुष)कृष्णार्पणकृष्ण के लिए अर्पण (चतुर्थी तत्पुरुष)
ग्रामोद्धारग्राम का उद्धार (ष० तत्पुरुष)गिरहकटगिरह को काटनेवाला (द्वि तत्पुरुष)
गृहस्थगृह में स्थित (उपपद तत्पुरुष)चन्द्रोदयचन्द्र का उदय (ष० तत्पुरुष)
जीवनमुक्तजीवन से मुक्त (ष० तत्पुरुष)ठाकुरसुहातीठाकुर (मालिक) के लिए रुचिकर बातें
तिलचट्टातिल को चाटनेवालादयासागरदया का सागर
दुखसंतप्तदुःख से संतप्तदेशगतदेश को गया हुआ
धनहीनधन से हीनधर्मविमुखधर्म से विमुख
नरोत्तमनरों में उत्तमपददलितपद से दलित
पदच्युतपद से च्युतपरीक्षोपयोगीपरीक्षा के लिए उपयोगी
पादपपैर से पीनेवाला (उपपद तत्पुरुष)पुत्रशोकपुत्र के लिए शोक
पुस्तकालयपुस्तक के लिए आलयमनमौजीमन से मौजी
मनगढ़न्तमन से गढ़ा हुआ (तृ० तत्पुरुष)मदमातामद से माता (तृ० तत्पुरुष)
मालगोदाममाल के लिए गोदामरसोईघररसोई के लिए घर
रामायणराम का अयन (ष० तत्पुरुष)राजकन्याराजा की कन्या (ष० तत्पुरुष)
विद्यार्थीविद्या का अर्थी (ष० तत्पुरुष)
करणतत्पुरुष
पदविग्रहपदविग्रह
प्रेमासिक्तप्रेम से सिक्तजलसिक्तजल से सिक्त
रसभरारस से भरामदमातामद से माता
मेघाच्छत्रमेघ से आच्छत्ररोगपीड़ितरोग से पीड़ित
रोगग्रस्तरोग से ग्रस्तमुँहमाँगामुँह से माँगा
दुःखार्तदुःख से आर्तमदान्धमद से अन्ध
देहचोरदेह से चोरपददलितपद से दलित
तुलसीकृततुलसी द्वारा कृतदुःखसन्तप्तदुःख से सन्तप्त
शोकाकुलशोक से आकुलकरुणापूर्णकरुणा से पूर्ण
अकालपीड़ितअकाल से पीड़ितशोकग्रस्तशोक से ग्रस्त
शोकार्तशोक से आर्तश्रमजीवीश्रम से जीनेवाला
कामचोरकाम से चोरमुँहचोरमुँह से चोर
सम्प्रदान तत्पुरुष
पदविग्रहपदविग्रह
शिवार्पणशिव के लिए अर्पणरसोईघररसोई के लिए घर
सभाभवनसभा के लिए भवनलोकहितकारीलोक के लिए हितकारी
मार्गव्ययमार्ग के लिए व्ययस्नानघरस्नान के लिए घर
मालगोदाममाल के लिए गोदामडाकमहसूलडाक के लिए महसूल
साधुदक्षिणासाधु के लिए दक्षिणादेशभक्तिदेश के लिए भक्ति
पुत्रशोकपुत्र के लिए शोकब्राह्मणदेयब्राह्मण के लिए देय
राहखर्चराह के लिए खर्चगोशालागो के लिए शाला
देवालयदेव के लिए आलयविधानसभाविधान के लिए सभा
परीक्षा भवनपरीक्षा के लिए भवनरसोईघररसोई के लिए घर
अपादान तत्पुरुष
पदविग्रहपदविग्रह
बलहीनबल से हीनधनहीनधन से हीन
पदभ्रष्टपद से भ्रष्टस्थानभ्रष्टस्थान से भ्रष्ट
मायारिक्तमाया से रिक्तपापमुक्तपाप से मुक्त
ऋणमुक्तऋण से मुक्तईश्र्वरविमुखईश्र्वर से विमुख
स्थानच्युतस्थान से च्युतलोकोत्तरलोक से उत्तर (परे)
नेत्रहीननेत्र से हीनशक्तिहीनशक्ति से हीन
पथभ्रष्टपथ से भ्रष्टजलरिक्तजल से रिक्त
प्रेमरिक्तप्रेम से रिक्तव्ययमुक्तव्यय से मुक्त
धर्मविमुखधर्म से विमुखपदच्युतपद से च्युत
धर्मच्युतधर्म से च्युतमरणोत्तरमरण से उत्तर
देश निकालादेश से निकालाजन्मांधजन्म से अंधा
सम्बन्ध तत्पुरुष
पदविग्रहपदविग्रह
अत्रदानअत्र का दानश्रमदानश्रम का दान
वीरकन्यावीर की कन्यात्रिपुरारित्रिपुर का अरि
राजभवनराजा का भवनप्रेमोपासकप्रेम का उपासक
आनन्दाश्रमआनन्द का आश्रमदेवालयदेव का आलय
रामायणराम का अयनखरारिखर का अरि
गंगाजलगंगा का जलरामोपासकराम का उपासक
चन्द्रोदयचन्द्र का उदयदेशसेवादेश की सेवा
चरित्रचित्रणचरित्र का चित्रणराजगृहराजा का गृह
अमरसआम का रसराजदरबारराजा का दरबार
सभापतिसभा का पतिविद्यासागरविद्या का सागर
गुरुसेवागुरु की सेवासेनानायकसेना का नायक
ग्रामोद्धारग्राम का उद्धारमृगछौनामृग का छौना
राजपुत्रराजा का पुत्रपुस्तकालयपुस्तक का आलय
राष्ट्रपतिराष्ट्र का पतिहिमालयहिम का आलय
घुड़दौड़घोड़ों की दौड़सेनानायकसेना के नायक
यथाशक्तिशक्ति के अनुसारराजपुरुषराजा का पुरुष
राजमंत्रीराजा का मंत्री
अधिकरण तत्पुरुष
पदविग्रहपदविग्रह
पुरुषोत्तमपुरुषों में उत्तमपुरुषसिंहपुरुषों में सिंह
ग्रामवासग्राम में वासशास्त्रप्रवीणशास्त्रों में प्रवीण
आत्मनिर्भरआत्म पर निर्भरक्षत्रियाधमक्षत्रियों में अधम
शरणागतशरण में आगतहरफनमौलाहर फन में मौला
मुनिश्रेष्ठमुनियों में श्रेष्ठनरोत्तमनरों में उत्तम
ध्यानमग्नध्यान में मग्नकविश्रेष्ठकवियों में श्रेष्ठ
दानवीरदान में वीरगृहप्रवेशगृह में प्रवेश
नराधमनरों में अधमसर्वोत्तमसर्व में उत्तम
रणशूररण में शूरआनन्दमग्नआनन्द में मग्न
आपबीतीआप पर बीती
कर्मधारय समास
पदविग्रहपदविग्रह
नवयुवकनव युवकछुटभैयेछोटे भैये
कापुरुषकुत्सित पुरुषकदत्रकुत्सित अत्र
निलोत्पलनील उत्पलमहापुरुषमहान पुरुष
सन्मार्गसत् मार्गपीताम्बरपीत अम्बर
परमेश्र्वरपरम् ईश्र्वरसज्जनसत् जन
महाकाव्यमहान् काव्यवीरबालावीर बाला
महात्मामहान् है जो आत्मामहावीरमहान् वीर
अंधविश्वासअंधा है जो विश्वासअंधकूपअंधा है जो कूप (कुआँ)
घनश्यामघन के समान श्यामनीलकंठनीला है जो कंठ
अधपकाआधा है जो पकाकाली मिर्चकाली है जो मिर्च
दुरात्मादुर (बुरी) है जो आत्मानीलाम्बरनीला है जो अंबर
अकाल मृत्युअकाल (असमय) है जो मृत्युनीलगायनीली है जो गाय
नील गगननीला है जो गगनपरमांनदपरम् है जो आनंद
महाराजामहान है जो राजामहादेवमहान है जो देव
शुभागमनशुभ है जो आगमनमहाजनमहान है जो जन
नरसिंहनर रूपी सिंहचंद्रमुखचंद्र के समान मुख
क्रोधाग्निक्रोध रूपी अग्निश्वेताम्बरश्वेत है जो अम्बर
लाल टोपीलाल है जो टोपीसदधर्मसत है जो धर्म
महाविद्यालयमहान है जो विद्यालयविद्याधनविद्या रूपी धन
करकमलकमल के समान करमृगनयनमृग जैसे नयन
खटमिट्ठाखट्टा और मीठा हैनरोत्तमनरों में उत्तम हैं जो
प्राणप्रियप्राण के समान प्रियघनश्यामघन के समान श्याम
कमलनयनकमल सरीखा नयनपरमांनदपरम आनंद
चन्द्रमुखचाँद-सा सुन्दर मुखचन्द्रवदनचन्द्र के समान वदन (मुखड़ा)
घृतात्रघृत मिश्रित अत्रमहाकाव्यमहान है काव्य जो
धर्मशालाधर्मार्थ के लिए शालाकुसुमकोमलकुसुम के समान कोमल
कपोताग्रीवाकपोत के समान ग्रीवागगनांगनगगन रूपी आंगन
चरणकमलकमल के समान चरणतिलपापड़ीतिल से बनी पापड़ी
दहीबड़ादही में भिंगोया बड़ापकौड़ीपकी हुई बड़ी
परमेश्वरपरम ईश्वरमहाशयमहान आशय
महारानीमहती रानीमृगनयनमृग के समान नयन
लौहपुरुषलौह सदृश पुरुष
विशेष्यपूर्वपदकर्मधारय
पदविग्रहपदविग्रह
कुमारश्रवणाकुमारी (क्वांरी)मदनमनोहरमदन जो मनोहर है
श्यामसुन्दरश्याम जो सुन्दर हैजनकखेतिहरजनक खेतिहर (खेती करनेवाला)
विशेषणोभयपदकर्मधारय
पदविग्रहपदविग्रह
नीलपीतनीला-पीला (दोनों मिले)कृताकृतकिया-बेकिया
शीतोष्णशीत-उष्ण (दोनों मिले)कहनी-अनकहनीकहना-न-कहना
विशेष्योभयपदकर्मधारय
पदविग्रहपदविग्रह
आम्रवृक्षआम्र है जो वृक्षवायसदम्पतिवायस है जो दम्पति
उपमानकर्मधारय
पदविग्रहपदविग्रह
विद्युद्वेगविद्युत के समान वेगशैलोत्रतशैल के समान उत्रत
कुसुमकोमलकुसुम के समान कोमलघनश्यामघन-जैसा श्याम
लौहपुरुषलोहे के समान पुरुष (कठोर)
उपमितकर्मधारय
पदविग्रहपदविग्रह
चरणकमलचरण कमल के समानमुखचन्द्रमुख चन्द्र के समान
अधरपल्लवअधर पल्लव के समाननरसिंहनर सिंह के समान
पद पंकजपद पंकज के समान
रूपकर्मधारय
पदविग्रहपदविग्रह
पुरुषरत्नपुरुष ही है रत्नभाष्याब्धिभाष्य ही है अब्धि
मुखचन्द्रमुख ही है चन्द्रपुत्ररत्नपुत्र ही है रत्न
अव्ययीभाव समास
पदविग्रहपदविग्रह
दिनानुदिनदिन के बाद दिनप्रत्यंगअंग-अंग
भरपेटपेट भरकरयथाशक्तिशक्ति के अनुसार
निर्भयबिना भय काउपकूलकूल के समीप
प्रत्यक्षअक्षि के सामनेनिधड़कबिना धड़क के
बखूबीखूबी के साथयथार्थअर्थ के अनुसार
प्रत्येकएक-एकमनमानामन के अनुसार
यथाशीघ्रजितना शीघ्र होबेकामबिना काम का
बेलागबिना लाग काआपादमस्तकपाद से मस्तक तक
प्रत्युपकारउपकार के प्रतिपरोक्षअक्षि के परे
बेफायदाबिना फायदे काबेरहमबिना रहम के
प्रतिदिनदिन दिनआमरणमरण तक
अनुरूपरूप के योग्ययथाक्रमक्रम के अनुसार
बेखटकेबिना खटके वे (बिन)यथासमयसमय के अनुसार
आजन्मजन्म से लेकरएकाएकअचानक, अकस्मात
दिनोंदिनकुछ (या दिन) ही दिन मेंयथोचितजितना उचित हो
रातोंरातरात-ही-रात मेंआजीवनजीवन पर्यत/तक
गली-गलीप्रत्येक गलीभरपूरपूरा भरा हुआ
यथानियमनियम के अनुसारप्रतिवर्षवर्ष-वर्ष/हर वर्ष
बीचोंबीचबीच ही बीच मेंआजकलआज और कल
यथाविधिविधि के अनुसारयथास्थानस्थान के अनुसार
यथासंभवसंभावना के अनुसारव्यर्थबिना अर्थ के
रातभरभर रातअनुकूलकुल के अनुसार
अनुरूपरूप के ऐसाआसमुद्रसमुद्रपर्यन्त
पल-पलहर पलबार-बारहर बार
द्विगु कर्मधारय (समाहारद्विगु)
पदविग्रहपदविग्रह
त्रिभुवनतीन भुवनों का समाहारत्रिकालतीन कालों का समाहार
चवत्रीचार आनों का समाहारनवग्रहनौ ग्रहों का समाहार
त्रिगुणतीन गुणों का समूहपसेरीपाँच सेरों का समाहार
अष्टाध्यायीअष्ट अध्यायों का समाहारत्रिपादतीन पादों का समाहार
पंचवटीपाँच वटों का समाहारत्रिलोक, त्रिलोकीतीन लोकों का समाहार
दुअत्रीदो आनों का समाहारचौराहाचार राहों का समाहार
त्रिफलातीन फलों का समाहारनवरत्ननव रत्नों का समाहार
सतसईसात सौ का समाहारपंचपात्रपाँच पात्रों का समाहार
चतुर्भुजचार भुजाओं का समूहचारपाईचार पैरों का समाहार
तिरंगातीन रंगों का समाहारअष्टसिद्धिआठ सिद्धियों का समाहार
चतुर्मुखचार मुखों का समूहत्रिवेणीतीन वेणियों का समूह
नवनिधिनौ निधियों का समाहारचवन्नीचार आनों का समाहार
दोपहरदो पहरों का समाहारपंचतंत्रपाँच तंत्रो का समाहार
सप्ताहसात दिनों का समूहत्रिनेत्रतीनों नेत्रों का समूह
दुराहादो राहों का समाहारचतुर्वेदचार वेदों का समाहार
उत्तरपदप्रधानद्विगु
पदविग्रहपदविग्रह
दुपहरदूसरा पहरशतांशशत (सौवाँ) अंश
पंचहत्थड़पाँच हत्थड़ (हैण्डिल)पंचप्रमाणपाँच प्रमाण (नाप)
दुसूतीदो सूतोंवालादुधारीदो धारोंवाली (तलवार)
बहुव्रीहि (समानाधिकरणबहुव्रीहि)
पदविग्रहपदविग्रह
प्राप्तोदकप्राप्त है उदक जिसेदत्तभोजनदत्त है भोजन जिसे
पीताम्बरपीत है अम्बर जिसकाजितेन्द्रियजीती है इन्द्रियाँ जिसने
निर्धननिर्गत है धन जिससेमिठबोलामीठी है बोली जिसकी (वह पुरुष)
चौलड़ीचार है लड़ियाँ जिसमें (वह माला)चतुर्भुजचार है भुजाएँ जिसकी
दिगम्बरदिक् है अम्बर जिसकासहस्त्रकरसहस्त्र है कर जिसके
वज्रदेहवज्र है देह जिसकीलम्बोदरलम्बा है उदर जिसका
दशमुखदश है मुख जिसकेगोपालवह जो, गौ का पालन करे
सतसईसात सौ का समाहारपंचपात्रपाँच पात्रों का समाहार
चतुर्वेदचार वेदों का समाहारत्रिलोचनतीन है लोचन जिसके अर्थात शिव
कमलनयनकमल के समान है नयन जिसके अर्थात विष्णुगिरिधरगिरि (पर्वत) को धारण करने वाला अर्थात श्री कृष्ण
गजाननगज के समान आनन (मुख) वाला अर्थात गणेशघनश्यामवह जो घन के समान श्याम है अर्थात श्रीकृष्ण
चक्रधरचक्र धारण करने वाला अर्थात विष्णुचतुर्मुखचार है मुख जिसके, वह अर्थात ब्रह्मा
नीलकंठनीला है जो कंठ अर्थात शिवपंचाननपाँच है आनन (मुँह) जिसके अर्थात वह देवता
बारहसिंगाबारह हैं सींग जिसके वह पशुमहेशमहान है जो ईश अर्थात शिव
लाठालाठीलाठी से लड़ाईसरसिजसर से जन्म लेने वाला
कपीशकपियों में है ईश जो- हनुमानखगेशखगों का ईश है जो वह गरुड़
गोपालगो का पालन जो करे वह, श्रीकृष्णचक्रपाणिचक्र हो पाणि (हाथ) में जिसके वह विष्णु
चतुराननचार है आनन जिनको वह, ब्रह्माजलजजल में उत्पन्न होता है वह कमल
जल्दजल देता है जो वह बादलनीलाम्बरनीला अम्बर या नीला है अम्बर जिसका वह, बलराम
मुरलीधरमुरली को धरे रहे (पकड़े रहे) वह, श्रीकृष्णवज्रायुधवज्र है आयुध जिसका वह, इन्द्र
व्यधिकरणबहुव्रीहि
पदविग्रहपदविग्रह
शूलपाणिशूल है पाणि में जिसकेचन्द्रभालचन्द्र है भाल पर जिसके
वीणापाणिवीणा है पाणि में जिसकेचन्द्रवदनचन्द्र है वदन पर जिसके
तुल्ययोग या सहबहुव्रीहि
पदविग्रहपदविग्रह
सबलबल के साथ है जोसपरिवारपरिवार के साथ है जो
सदेहदेह के साथ है जोसचेतचेत (चेतना) के साथ है जो
व्यतिहारबहुव्रीहि
पदविग्रहपदविग्रह
मुक्कामुक्कीमुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुईलाठालाठीलाठी-लाठी से जो लड़ाई हुई
डण्डाडण्डीडण्डे-डण्डे से जो लड़ाई हुई
प्रादिबहुव्रीहि
पदविग्रहपदविग्रह
बेरहमनहीं है रहम जिसमेंनिर्जननहीं है जन जहाँ
द्वन्द्व (इतरेतरद्वन्द्व)
पदविग्रहपदविग्रह
धर्माधर्मधर्म और अधर्मभलाबुराभला और बुरा
गौरी-शंकरगौरी और शंकरसीता-रामसीता और राम
लेनदेनलेन और देनदेवासुरदेव और असुर
शिव-पार्वतीशिव और पार्वती पापपुण्य पाप और पुण्यभात-दालभात और दाल
देश-विदेशदेश और विदेशभाई-बहनभाई और बहन
हरि-शंकरहरि और शंकरधनुर्बाणधनुष और बाणा
अन्नजलअन्न और जलआटा-दालआटा और दाल
ऊँच-नीचऊँच और नीचगंगा-यमुनागंगा और यमुना
दूध-दहीदूध और दहीजीवन-मरणजीवन और मरण
पति-पत्नीपति और पत्नीबच्चे-बूढ़ेबच्चे और बूढ़े
माता-पितामाता और पिताराजा-प्रजाराजा और प्रजा
राजा-रानीराजा और रानीसुख-दुःखसुख और दुःख
अपना-परायाअपना और परायागुण-दोषगुण और दोष
नर-नारीनर और नारीपृथ्वी-आकाशपृथ्वी और आकाश
बाप-दादाबाप और दादायश-अपयशयश और अपयश
हार-जीतहार और जीतऊपर-नीचेऊपर और नीचे
शीतोष्णशीत और उष्णइकतीसएक और तीस
दम्पतिजाया-पतिराग-द्वेषराग और द्वेष
लाभालाभलाभ और अलाभराधा-कृष्णराधा और कृष्ण
लोटा-डोरीलोटा और डोरीगाड़ी-घोड़ागाड़ी और घोड़ा
समाहारद्वन्द्व
पदविग्रहपदविग्रह
रुपया-पैसारुपया-पैसा वगैरहघर-आँगनघर-आँगन वगैरह (परिवार)
घर-द्वारघर-द्वार वगैरह (परिवार)नाक-काननाक-कान वगैरह
नहाया-धोयानहाया और धोया आदिकपड़ा-लत्ताकपड़ा-लत्ता वगैरह
वैकल्पिकद्वन्द्व
पदविग्रहपदविग्रह
पाप-पुण्यपाप या पुण्यभला-बुराभला या बुरा
लाभालाभलाभ या अलाभधर्माधर्मधर्म या अधर्म
थोड़ा-बहुतथोड़ा या बहुतठण्डा-गरमठण्डा या गरम
नञ समास
पदविग्रहपदविग्रह
अनाचारन आचारनास्तिकन आस्तिक
अनदेखान देखा हुआअनुचितन उचित
अन्यायन न्यायअज्ञानन ज्ञान
अनभिज्ञन अभिज्ञअद्वितीयजिसके समान दूसरा न हो
नालायकनहीं लायकअगोचरन गोचर
अचलन चलअजन्मान जन्मा
अधर्मन धर्मअनन्तन अन्त
अनेकन एकअनपढ़न पढ़
अपवित्रन पवित्रअलौकिकन लौकिक

No comments:

Post a Comment