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Wednesday, 15 March 2017

परी की दयालुता

कहानी : परी की दयालुता



किसी नगर में एक अमीर आदमी रहता था। उसके पास बहुत पैसा था। शहर भर में उसका बहुत नाम था, किन्तु इतना सब होते हुए भी उसमें घमंड नहीं था। वह दीन-दुखियों की सहायता किया करता था। उसकी हवेली में मांगने वालों की हमेशा भीड़ लगी रहती थी, पर दूसरों को ख़ुशी देने वाला वह अमीर हमेशा उदास-उदास दिखाई पड़ता था। वह ही नहीं, उसकी पत्नी भी हमेशा चिंता में डूबी रहती थी। इसका कारण था उनके घर में संतान का न होना। दोनों पति-पत्नी यही सोचते रहते थे कि उनके बाद इस सारी धन-दौलत का क्या होगा ?

उनकी हवेली के साथ एक बहुत खूबसूरत बगीचा भी था। उस बगीचे में संगमरमर की बनी हुई कई आदमकद मूर्तियां खड़ी थीं। अमीर की पत्नी को सलीके से जिंदगी बिताने का बेहद शौक था, इसलिए उसने बगीचे में परियों की मूर्तियों के पास अपने बैठने के लिए खूबसूरत जगह बनवाई हुई थी। यहां अनेक रंग-बिरंगे फूल खिले थे। अमीर की पत्नी माली से फूलों की मालाएं बनवाती और स्वयं आकर परियों के गले में पहनाया करती थी। एक दिन अमीर की पत्नी संतान की चिंता में बहुत ही उदास थी।


उस दिन उसका जन्म दिन भी था। वह चुपचाप बगीचे में आकर बैठ गई और मन-ही-मन सोचने लगी- 'बिना संतान के भी कोई गृहस्थ जीवन है। बिना बच्चों के हवेली कैसी सूनी-सूनी दीख पड़ती है।' बहुत देर तक वह इन्हीं विचारों में खोई रही। थोड़ी देर बाद पक्षियों का चहचहाना सुनकर उसका ध्यान टूटा। दूर-दूर से आकर पक्षी रैन बसेरा करने के लिए पेड़ों पर बैठ रहे थे। तभी उसने जाना कि दिन ढल रहा है। आज उसकी हवेली में जन्म दिन समारोह का भी आयोजन किया गया था। उसने सोचा- 'जल्दी से हवेली में चलूं। पतिदेव मुझे ढूंढ रहे होंगे।'

जैसे ही वह उठी, उसे गुनगुनाहट की मीठी आवाज सुनाई दी। वह सोचने लगी- 'अरे बगीचे में कौन आ गया ? यहाँ तो किसी को भी आने की आज्ञा नहीं है। फिर यह आवाज तो किसी नारी की लगती है।' यह सोचकर वह इधर-उधर देखने लगी। तभी श्वेत वस्त्र धारण किए एक बहुत सुंदर लड़की उसके सामने आ खड़ी हुई। उसे देखकर अमीर की पत्नी को आश्चर्य हुआ कि बाग में परियों की प्रतिमाओं में से एक परी का जो मुकुट था, वैसा ही मुकुट और ताजे फूलों की माला इस लड़की ने पहन रखी थी। 'क्यों, मुझे पहचाना नहीं ? मुस्कराकर लड़की ने पूछा। सुनकर भी गृह-स्वामिनी चुप खड़ी रही। उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि वह क्या उत्तर दे। फिर वह बोली- 'कैसे पहचानूंगी ? मैं तुम्हें पहली बार देख रही हूँ। तुम इतनी सुंदर हो। इस शहर की तो लगती नहीं। कहाँ से आई हो ?

लड़की बोली- 'रहने वाली तो मैं परी लोक की हूँ, मगर तुम्हारे बाग में भी तो हम रहती हैं। तुमने जो प्रतिमाएं लगाई हैं, वे हमें बहुत अच्छी लगती हैं। अक्सर पूनम की रात में हम इस बाग में आती हैं। तुम परियों से प्यार करती हो न।' अमीर की पत्नी गौर से उस लड़की को देखती हुई बोली- 'तो तुम परी हो, तभी इतनी सुंदर हो। तुम्हारे छोटे-छोटे पंख कितने सुंदर लग रहे हैं। मुझे सचमुच परियां बहुत अच्छी लगती हैं। तुम मुझे बहुत पसंद हो। परी बोली- 'मगर परियां तो फूलों की तरह हंसती-खिलखिलाती रहती हैं। तुम परियों को प्यार तो करती हो, फिर इतनी उदास क्यों रहती हो ? हमारी तरह खिलखिलाकर हंसो।'

यह सुनकर अमीर की पत्नी का दुःख उसकी आंखों में भर आया। उसकी आंखों से आँसू टपक पड़े। फिर उसने अपने सारे दुखों को परी के सामने उड़ेलकर रख दिया। 'दुखी मत हो।' परी बोली- 'मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगी।' सुनकर अमीर की पत्नी बोली- 'क्या तुम सचमुच मुझे संतान दे सकती हो ? 'हां-हां, क्यों नहीं। ध्यान से सुनो।' परी ने कहा- 'तुम कल सुबह नहा-धोकर इसी स्थान पर आ जाना। उस सामने वाले पेड़ पर तुम्हें दो सेब लटकते हुए मिलेंगे। बिना किसी को बताए तुम उन्हें छीलकर खा लेना। फिर देखना, तुम्हारे एक नहीं, दो सुंदर पुत्र पैदा होंगे। अब जाओ, धूमधाम से अपना जन्मदिन मनाओ।' इतना कहकर परी अंतर्धान हो गई।

दूसरे दिन अमीर की पत्नी नहाकर बिना किसी को बताए सीधे बाग में पहुँची। वह जल्दी-से-जल्दी सेब देखना और खाना चाहती थी। सामने ही पेड़ पर उसे दो सेब लटकते दिखाई दे गए। सेबों को देखकर अमीर की पत्नी खुश हो गई। ख़ुशी में वह परी की बात भूल गई और एक सेब को बिना छीले ही खा गई। तभी उसे याद आया कि परी ने तो उसे सेब छीलकर खाया। धीरे-धीरे समय बीता। थोड़े दिन बाद अमीर की पत्नी ने दो जुड़वा लड़कों को जन्म दिया। उनमें से पहला लड़का तो एकदम काला और कुरूप था। उसे देखकर सब डर गए। मगर दूसरा लड़का बहुत ही खूबसूरत किसी राजकुमार जैसा था। धीरे-धीरे दोनों बच्चे बड़े होने लगे। दोनों ही बहादुर, विनम्र और होशियार थे। अमीर की पत्नी अपने दोनों बेटों से समान रूप से प्यार करती थी, लेकिन घर के नौकर-चाकर और स्वयं अमीर भी उस कुरूप लड़के से नफरत करते थे।

दोनों जवान हुए तो उनकी शादी की बात शुरू हुई। जो भी रिश्ता आता, छोटे लड़के के लिए ही आता। माँ को यह देखकर बहुत दुख होता। एक दिन उसका बड़ा बेटा बोला- 'माँ! तुम इतनी दुखी क्यों रहती हो ? मैं जानता हूँ, तुम मुझे बहुत प्यार करती हो। तुम उदास होती हो तो मैं भी दुखी हो जाता हूँ।' माँ ने कहा- 'बेटा ! भगवान ने तुम्हारे साथ अन्याय किया है, लेकिन मैं भगवान को ही क्यों दोष दूँ ? यह तो मेरी भूल का नतीजा है, मैं ही इसका प्रायश्चित करूँगी।' पूनम की रात थी। माँ बगीचे में इसी तरह उदास बैठी बेटे के बारे में सोच रही थीं। पास ही बड़ा बेटा भी बैठा था।

माँ बीस साल पहले परी से मिलने की कहानी बेटे को सुना रही थी। सुनाते-सुनाते माँ को नींद आ गई। बेटा माँ की सुनी कहानी के अनुसार एक परी की मूर्ति के पास जाकर खड़ा हो गया। वह सोचने लगा- 'माँ ने यह भी तो बताया था कि पूनम की रात को यहाँ परियाँ आती हैं। काश! आज परियाँ आ जाएँ और मेरा दुख दूर कर दें।' तभी छम-छम की आवाज सुनाई दी। उसने इधर-उधर देखा, श्वेत वस्त्र पहने एक सुंदर परी नाच रही थी। वह मंत्र-मुग्ध-सा होकर उसे देखता रह गया। परी नाच चुकी तो उस लड़के के पास आई। लड़का उसे देखता ही रहा। समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस लड़की से क्या कहे ? तभी परी बोली- 'तुम मुझे नहीं पहचानते, किन्तु मैं तुम्हें जानती हूँ। तुम्हें ही नहीं, तुम्हारा दुख भी जानती हूँ। जाओ, तुम अपने कमरे में जाकर सो जाओ। बस एक काम करना, खिड़की खुली ही रखना। सुबह उठोगे तो तुम्हारा दुख दूर हो चुका होगा।' इतना कहकर परी चली गई।

लड़का कमरे में आकर सो गया। रात को उसे लगा, जैसे खिड़की से आती दूधिया किरणें उसके शरीर को ठंडक पहुँचा रही हैं। वह एक बार को सिहर उठा। फिर करवट बदलकर सो गया। सुबह जब वह बहुत देर तक नहीं उठा तो माँ ने आकर उसके कमरे का दरवाजा खटखटाया। लड़के ने दरवाजा खोला तो माँ हैरान होकर बोली- 'तुम कौन हो और इस कमरे में क्या कर रहे हो ? 'माँ! तुमने मुझे पहचाना नहीं। मैं तुम्हारा लाड़ला, तुम्हारा बड़ा बेटा ही तो हूँ।' लड़का बोला। 'बेटे! सच, तुम मेरे बेटे हो। फिर तो यह चमत्कार हो गया। जाकर शीशे में अपना चेहरा तो देखो।' माँ ख़ुशी से बोली। दोनों माँ-बेटे दौड़कर शीशे के सामने गए।

उसने जब अपना चेहरा देखा तो हैरान रह गया। ख़ुशी से चहकता हुआ वह बोला- 'यह उस परी का कमाल है माँ!जो कल रात मुझे मिली थी।' माँ बोली- 'हाँ बेटे! उसी परी ने मेरी इच्छा पूरी भी की थी और उसी ने तुम्हारी सूरत भी बदल दी। सच ही कहा जाता है कि परियाँ बहुत दयालु होती हैं। यह कहते हुए माँ-बेटे को लेकर बगीचे में गई, मगर वहाँ परी नहीं थीं। परियों की मूर्तियाँ खड़ी मुस्करा रही थीं।

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