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Thursday 23 March 2017

अमन की चतुराई

कहानी : अमन की चतुराई


अमन अपने दादा जी के साथ रहता था। वह बहुत होनहार और समझदार था। अमन अपना समय बेकार के कामों में न गँवाकर घर के काम-काज में दादा जी की सहायता करता था। अमन के दादा जी की इच्छा थी कि वह कुछ पूँजी अपने पोते के लिए छोड़कर इस दुनिया से विदा लें। अपनी लगन और मेहनत से उन्होंने थोड़ी-थोड़ी बचत करके सोने की कुछ मोहरें इकट्ठी भी कर ली थीं।


एक दिन जब अमन घर लौटा, तो उसने देखा कि दादा जी घर के बाहर बैठकर जोर जोर-से रो रहे हैं। अमन के पूछने पर उन्होंने बताया कि मैंने जो धन तुम्हारे लिए बचाया था, उसे एक चोर चुराकर ले गया। ''दादा जी! क्या आपने चोर को देखा था ?'' अमन ने पूछा। ''हाँ, अभी-अभी वह पूरब दिशा में भागा है।'' कहते हुए उन्होंने चोर का हुलिया अमन को बता दिया।

अमन तुरंत पूरब दिशा की तरफ भागा। थोड़ी दूर जाने पर उसे एक आदमी दिखाई दिया। उसका हुलिया चोर से मिलता-जुलता था। अमन बचते हुए उससे आगे निकल गया और एक कुएँ की मुँडेर पर बैठकर चोर का इंतजार करने लगा। चोर जब कुएँ के पास आ गया तो अमन ने एक पत्थर कुएँ में फेंका, फिर जोर जोर-से रोने लगा। चोर ने उससे रोने का कारण पूछा। अमन बोला- ''पिता जी ने मेरे जन्मदिन पर मुझे सोने की एक टोपी दी थी। वह कुएँ में गिर गई। अब पिता जी मुझे बहुत मारेंगे। ''


चोर के कुएँ में उतरते ही अमन ने उसके कुर्ते की जेबों की तलाशी ली। उसमें उसे सोने की मोहरों वाली थैली मिल गई। दूर आकर उसने वस्त्र फेंके और थैली लेकर दादा जी के पास आ गया। अमन की चतुराई देखकर दादा जी बहुत प्रसन्न हुए। उधर चोर कुएँ में टोपी ढूँढ़ता ही रहा। फिर थक-हारकर जब वह कुएँ से बाहर निकला, तो अमन को वस्त्रों के साथ गायब देखकर उसने अपना माथा पीट लिया।सोने की टोपी की बात सुनते ही चोर की आँखें चमक उठीं। उसने अमन को दिलासा दिया- ''रोओ मत, मैं अभी तुम्हारी टोपी निकाल देता हूँ।'' उसने तुरंत अपने वस्त्र उतारकर अमन को दिए और स्वयं कुएँ में उतर गया। वह मन-ही-मन सोच रहा था कि सोने की टोपी हाथ में आते ही उसे लेकर भाग जाऊँगा।

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